सोमवार, 17 अक्तूबर 2016

= विन्दु (२)८६ =

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॥ दादूराम सत्यराम ॥
*श्री दादू चरितामृत(भाग-२)* लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
**= विन्दु ८६ =** 

**= खोजी दादू ज्ञान गोष्टी =**
खोजीजी ने पूछा - आप वैराग्य का स्वरूप बताने की भी कृपा अवश्य करैं ? दादूजी ने कहा - 
"दादू सूक्ष्म मांहिले, तिनका कीजे त्याग । 
सब तज राता राम से, दादू यहु वैराग ॥" 
जो अन्तःकरण में अहंकार, प्रतिष्ठा की इच्छा, राग, द्वेष, विषय - वासनादि सूक्ष्म माया रूप गुण हैं, उन सब का त्याग जिसमें किया जाता है और कृतृत्वादि सभी विकारों को त्याग कर के राम के भजन में ही अनुरक्त होना होता है, उस स्थिति का नाम ही सच्चा वैराग्य है । बाहर की वस्तुयें तो दंभी भी त्याग सकता है । खोजीजी ने पूछा - यह मन शरीर के गुणों को कैसे भूले ? यह भी बताइये । दादूजी ने कहा - 
"मांहीं तैं मन काढ़ कर, ले राखे निज ठौर । 
दादू भूले देह गुण, विसर जाय सब और ॥" 
देहादिक से मन को निकाल कर स्वस्वरूप - स्थान में स्थिर रखने से मन देह के गुणों को भूल जाता है और संपूर्ण मायिक प्रपंच को भी भूल जाता है । 
"नाम भुलावे देह गुण, जीवदशा सब जाय । 
दादू छाड़े नाम को, तो फिर लागे आय ॥" 
निरंतर नाम चिन्तन देह के गुणों को भुला देता है और निरंतर नाम चिन्तन से ही ज्ञान होकर कर्तृत्व भोक्तृत्व आदि रूप संपूर्ण जीव भाव की अवस्था भी दूर हो जाती है किन्तु ब्रह्मसाक्षात्कार होने से पहले ही नाम चिन्तन को छोड़कर यदि मन सांसारिक विषयों में लग जायगा तो देह के गुण और जीव भाव फिर आ लगेंगे । ब्रह्मसाक्षात्कार होने के पश्चात् तो सब को ब्रह्म रूप समझता है । ब्रह्म भिन्न कुछ देखता ही नहीं तब जायगा भी कहां । उक्त प्रकार खोजीजी और दादूजी की ज्ञान गोष्टी होती रहती थी । उस समय आये हुये आस - पास के संत तथा भक्त दोनों संतों के अनुभव पूर्ण वचनामृत को पानकर के परम तृप्त होते थे । 
(क्रमशः)

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