रविवार, 2 अक्तूबर 2016

= सर्वंगयोगप्रदीपिका (च.उ. १५-१६) =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
https://www.facebook.com/DADUVANI
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*सर्वांगयोगप्रदीपिका(ग्रंथ२)*
**सांख्ययोग नामक = चतुर्थ उपदेश =**
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*= बादल का उदाहरण =*
*जैसैं नभ महिं बादर होई ।*
*ता महिं लौन भये पुनि सोई ।*
*ऐसैं आतम बिश्व बिचारा ।*
*महापुरुष कीनौ निरधारा ॥१५॥*
जैसे आसमान में बादल पैदा होते हैं, और उसी में समा जाते हैं । इसी तरह यह सारा विश्व आत्मा से उद्भूत होता है और एक दिन उसी में पुनः लीन हो जाता है । ऋषि-मुनियों ने गम्भीर अध्ययन मनन के बाद यही निष्कर्ष निकाला है ॥१५॥
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*= चक्रवात का उदाहरण =*
*जैसैं उपजै वायु बघूरा ।*
*देखत के दीसहि पुनि भूरा ।*
*आँटी छूटै पवन समाही ।*
*आतम विश्व भिन्न यौं नाहीं ॥१६॥*         
जैसे वायु में तरह तरह के काले पीले लाल रंग का चक्रवात(बवंडर) पैदा होता है और चक्र समाप्त हो जाने पर पुनः पुनः वह वायु में विलीन हो जाता है; उसी तरह यह सारी सृष्टि भी एक दिन आत्मा में लीन हो जाती है ॥१६॥
(क्रमशः)

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