शनिवार, 8 अक्तूबर 2016

= सर्वंगयोगप्रदीपिका (च.उ. २१-२२) =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
https://www.facebook.com/DADUVANI
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*सर्वांगयोगप्रदीपिका(ग्रंथ२)*
**ज्ञानयोग नामक = चतुर्थ उपदेश =**
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*= पट का उदाहरण =*
*जैसैं तंतुहि पट लै बाना ।**वोत प्रोत सो तंतु समाना ।* 
*भेद भाव कछु भिन्न न होई ।**यौं आतमा विश्व नहिं दोई ॥२१॥* 
जैसे कपड़ा और तन्तु व्यवहार में अलग-अलग नामवाले होते हुए भी परमार्थ में तन्तुमात्र है, तन्तु से भिन्न नहीं है; उसी तरह यह विश्व आत्मा से भिन्न नहीं है ॥२१॥ 
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*= माला का उदाहरण =*
*जैसैं करी सूत की माला ।*
*मनिका सूत न होइ निराला ।* 
*यौं आतमा बिश्व नहिं भेदा ।*
*कहत पुकारे प्रगट जु वेदा ॥२२॥* 
जैसे सूत की बनी हुई माला में मणि और सूत अलग-अलग दिखायी देते हैं परन्तु सच्चाई यह है कि वह सूत मात्र हैं; इसी तरह नाम-व्यवहार में भले ही विश्व और आत्मा दो अलग-अलग हों परन्तु वस्तुसत् के रूप में एक ब्रह्म ही सत्य है - ऐसा श्रुति(वेद) वचनों से सिद्ध है ॥२२॥ 
(क्रमशः)

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