रविवार, 16 अक्तूबर 2016

= सर्वंगयोगप्रदीपिका (च.उ. ३३/३४) =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
https://www.facebook.com/DADUVANI
.
*सर्वांगयोगप्रदीपिका(ग्रंथ२)*
**ज्ञानयोग नामक = चतुर्थ उपदेश =** 
.
*अहं अभेद्य अछेद्य अलेखा ।*
*अहं अगाध सु अकाल अदेखा ।*
*अहं सदोदित सदा प्रकाशा ।*
*साक्षी अहं सर्व महिं बासा ॥३३॥*
मैं किसी अस्त्र से भेदा नहीं जा सकता, किसी शस्त्र से काटा नहीं जा सकता । मेरे गुणों को कौन लिपिबद्ध कर सकता है; क्योंकि मैं अगाध हूँ, मैं क्रियारहित(निष्पन्द) हूँ, अदृश्य हूँ । मैं सदा सर्वदा प्रकाशमय हूँ । साक्षिरूप हूँ और सर्वव्यापी हूँ ॥३३॥ 
.
*अहं शुद्ध साक्षात सु न्यारा ।*
*कर्ता अहं सकल संसारा ।* 
*अहं सीव सूक्षम सब सृष्टा ।*
*अहं सर्वज्ञ अहं सब दृष्टा ॥३४॥* 
मैं रागादि विकारों तथा माया-प्रपंच से रहित हूँ, शुद्ध हूँ, संसार से अलग होते हुए भी उसका स्रष्टा हूँ । मैं स्वयं ब्रह्मस्वरूप(काल्याण-स्वरूप) हूँ, सूक्ष्म तत्व हूँ, अत एव सब का उत्पत्तिकर्ता हूँ, तथा सर्वज्ञ हूँ तथा सर्वदर्शी हूँ ॥३४॥
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें