शनिवार, 8 अक्तूबर 2016

=३०=

卐 सत्यराम सा 卐
दादू एता अविगत आप थैं, साधों का अधिकार ।
चौरासी लख जीव का, तन मन फेरि सँवार ॥ 
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साभार ~ parveen dadu(wtsap)
एक दिन बाबा जी सत्तसंग कर रहे थे ! तो एक सत्तसंगन बीबी के दाँत मे बहुत दर्द हुआ! दर्द इतना बढ गया कि वो बीबी हाय हाय करती सीधा जमीन पर लेट गइ, एक सेवादार बाबा जी के पास गया और बाबा जी से कहा बाबा जी एक बीबी दाँत के दर्द से कराह रही है ! आप कुछ दया करें, बाबा जी ने कहा भाई आप चिंता न करें स्वामी जी महाराज की तरफ से दया हो रही है !
सेवादार हाथ जोड़कर अपनी जगह पर वापस बैठ गया, मगर बीबी दर्द से हाय हाय चिल्लाती रही, सेवादार फिर अपनी जगह से उठा और बाबा जी से कहा बाबा जी वो बीबी हाय हाय कर रही है आप थोड़ी दया करें ! बाबा जी ने कहा भाई पूरी दया हो रही है !
जो शबद् के भेदी महात्मा होते हैं उन्हें हमारे कर्म ऐसे नजर आते हैं, जैसे काँच के गिलास में पानी, बाबा जी ने सेवादार को बताया भाई इस बीबी ने पिछले जन्म में किसी छोटे बच्चे के गले में पड़ी सोने की चेन चुराई थी ! चेन लेकर के भी इस बीबी का दिल नहीं भरा तो इसने उस बच्चे को जान से मार दिया !
अब इस जन्म मे वो बच्चा इस बीबी के दाँत मे कीड़ा बनकर बैठा है और इसको दर्द दे रहा है, स्वामी जी महाराज ने इस बीबी के कर्मों के भुगतान मे फेरबदल कर दिया है ! इस बीबी को छोटे बच्चे के कत्ल के एवज मे नरक की आग मिलनी थी ! मगर स्वामी जी महाराज थोड़ा सा दाँत का दर्द देकर इस बीबी का भुगतान करवा रहे हैं !!
हम सब जीव जब भी कोई दुःख तकलीफ आती है तो हम गुरू पर उंगली खड़ी कर देते हैं गुरू को कोसना शुरू कर देते हैं, हम यह नहीं देख पाते हैं कि गुरू की दया लगातार हो रही है ! जिस दिन गुरू अपने शिष्य को शबद् का भेद देता है उसी दिन से हमारे कर्मों का हिसाब त्रिलोकी नाथ से ले लेते हैं गुरू अपने शिष्य की तरफ आने वाली सूल को सुई कर देता है !
** पुरी **


सो धक्का सुनहाँ को देवै, घर बाहर काढै ।
दादू सेवक राम का, दरबार न छाड़ै ॥ 
साहिब का दर छाड़ि कर, सेवक कहीं न जाय ।
दादू बैठा मूल गह, डालों फिरै बलाय ॥ 
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धन्य गुरु ~ नानक साहेब ने एक दिन अजब वेश बनाया, काले वस्त्र, हाथ में चिमटा, एक झोला, कुछ खूंखार कुत्ते, बिलकुल काल भैरव से बन कर करतारपुर नगर से बाहर की तरफ जाने लगे। उनके अनुसरण करते सारी संगत भी साथ ही चल पड़ी, कुछ दूर चल कर गुरु नानक साहब ने मुड़ कर देखा तो अपने झोले में हाथ डाला और सोने के सिक्के निकाले और संगत की तरफ उछाल दिए और आगे बढ़ गए। कुछ लोग वो सिक्के इकट्ठे करने लग गए और वहीं रुक गए, गुरु नानक आगे चले गए फिर कुछ दूर जा कर झोले से हीरे निकाले और संगत की तरफ फेंके, फिर कुछ आगे जा कर रत्न फिर कुछ आगे जा कर पन्ने।
हर बार कुछ ना कुछ लोग संगत से कम होते गए जब कुछ लोग ही गुरु साहब के पीछे रह गए तो महाराज ने उन पर खुंख़ार कुत्ते छोड़ दिए, अब सब लोग भाग गए बस दो सिख रह गए भाई लहणा और बाबा बुढ़ा जी अब गुरु नानक साहेब ने उनको चिमटे से पीटना शुरू कर दिया पर वो मौन रह कर मार खाते रहे।
गुरु नानक आगे चल पड़े दोनों फिर पीछे चल पड़े गुरु नानक साहब ने बाबा बुढ़ा जी को रुकने का इशारा किया तो वो वही हाथ जोड़ कर रुक गए, गुरु जी ने कहा, लहणे देख सारे मुझे छोड़ कर चले गए मेरा सबसे बड़ा सेवक बुढ़ा भी रुक गया तूँ क्यों नही जाता ?
भाई लहणे ने कहा :- सतगुरु, जिनको तुझसे सन्तान के वर की आस थी वो मुरादें पा कर मुड़ गए, कोई सोने को चाहने वाला सोना ले के, हीरे की चाह वाला हीरे ले के, कोई तेरी रम्ज़ में छुपे भले को नहीं देख पाया तो तेरे दिए दुख से डर के चला गया, किसी को तूने रुकने का इशारा कर दिया तो वो तेरे हुक्म में रुक गया लेकिन दाता मैं कहाँ जाऊँ मेरा कुटम्ब भी तूँ, मेरी ओट भी तूँ मेरा आसरा भी तूँ, मेरा बल भी तूँ, मेरी बुद्धि भी तूँ, मेरा धन भी तूँ, मैं आप के बिना अपने जीवन की कलपना भी नहीं कर सकता।
गुरु नानक साहब नें जब ये सुना तो कहा लहणे, जब तेरा सब कुछ मैं हूँ तो ठीक है वहां जो वो एक मुर्दा शरीर पड़ा है जा वो मुर्दा खा कर आ, भाई लहणे उठ कर उस मुर्दे के निकट गए और बैठ गए, गुरु नानक बोले लहणे बैठा क्यों है मुर्दा खा, भाई लहणे ने हाथ जोड़ कर कहा :- सतगुरु कहाँ से खाना शुरू करूं पैर की तरफ से या सिर की तरफ से ? हुक्म हुआ सिर की तरफ से खा, भाई लहणे ने जब कफ़न हटाया तो वहाँ कोई मुर्दा था ही नही, गुरु नानक साहब दौड़ करआए और भाई लहणे को गले से लगा लिया और कहा भाई लहणे तूने सतगुरु को अपना सब कुछ माना है तेरी सेवा धन्य है, आज तू मेरे अंग लगा है आज से ये संसार तुझे गुरु अंगद देव के नाम से जानेगा। तूने अपने गुरु की सच्चे हृदय से सेवा की है सारा संसार तेरी पूजा करेगा इतना कह कर गुरु नानक साहेब ने भाई लहणा जी को गुरु अंगद साहब बना कर गुरुगद्दी सोंप दी

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