शनिवार, 8 अक्तूबर 2016

= परिचय का अंग =(४/११९-२१)

॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥
श्री दादू अनुभव वाणी टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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**= परिचय का अँग ४ =** 
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कामधेनु दुहि पीजिये, अगम अगोचर जाइ ।
दादू पीवै प्रीति सौं, तेज पुँज की गाइ ॥११९॥
ज्ञान - ज्योति राशि ब्रह्म - कामधेनु गो का दर्शन दुग्ध हम तो अति प्रेम से पान करते हैं । साधको ! तुम षट् प्रमाण की अविषय, इन्द्रियातीत निर्विकल्प समाधि अवस्था में जाकर, ब्रह्म - कामधेनु का अभेद - दर्शन दुग्ध अहँ ब्रह्मास्मि अखँड वृत्ति दोहन क्रिया द्वारा पान करो ।
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कामधेनु करतार है, अमृत सरवै सोइ ।
दादू बछरा दूध को, पीवै तो सुख होइ ॥१२०॥
ब्रह्म ही कामधेनु है । वही निर्विकल्पावस्था में अपना अमृतमय दर्शन - दुग्ध बहाती है । जब जिज्ञासु - बछड़ा उसके दर्शन - दुग्ध को पान करता है तब उसे अवश्य ही ब्रह्मानन्द प्राप्त होता है ।
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ऐसी एकै गाइ है, दूझै बारह मास ।
सो सदा हमारे संग है, दादू आतम पास ॥१२१॥
वह एक मात्र ब्रह्म - गो ही ऐसी विलक्षण है जो बारह मास ही दर्शन - दुग्ध देती रहती है । ब्रह्म साक्षात्कार होने पर ब्रह्मात्मा का अभेद ही सदा भासता रहता है । वह ब्रह्म - गो आत्मा के अभेद भाव से अति निकट होने से सदा हमारे साथ ही है ।
(क्रमशः)

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