बुधवार, 19 अक्तूबर 2016

= विन्दु (२)८६ =

#‎daduji 
॥ दादूराम सत्यराम ॥
**श्री दादू चरितामृत(भाग-२)** लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥

**= विन्दु ८६ =**

**= एक वृद्ध को उपदेश =** 
पालड़ी में एक दिन एक वृद्ध पुरुष ने दादूजी से प्रश्न किया - महाराज मुझे क्या करना चाहिये ? परम दयालु संत दादूजी ने उसके अधिकार के अनुसार उसे इस पद से उपदेश किया - 
"साथी सावधान हो रहिये, 
पलक मांहिं परमेश्वर जाने, कहा होय कहा कहिये ॥ टेक ॥ 
बाबा बाट घाट कुछ समझन, आवे, दूर गमन हम जाना । 
परदेशी पंथ चले अकेला, औघट घाट पयाना ॥ १ ॥ 
बाबा संग न साथी कोइ नहिं तेरा, यहु सब हाट पसारा । 
तरुवर पंखी सबहि सिधाये, तेरा कौण गँवारा ॥ २ ॥ 
बाबा सब हि बटाऊ पंथ शिरानें, सु स्थिर नांहीं कोई । 
अंतकाल को आगे पीछे, बिछुरत बार न होई ॥ ३ ॥ 
बाबा काची काया कौण भरोसा, रैन गई क्या सोवे । 
दादू संबल१ सुकृत लीजे, सावधान किन होवे ॥ ४ ॥" 
हे साथी सचेत होकर भगवान् का भजन करते हुये रहो । आगामी पलक में क्या हो जाय, इसके विषय में क्या कहा जा सकता है ? परमेश्वर ही जानते हैं । हे बाबा ! हमें चलकर दूर जाना है और उस मार्ग में काम, क्रोधादिक विकट घाटियों को उलंघन करने का कुछ उपाय भी नहीं समझ में आता है, यहां तो यह जीव परदेशी है और जिस पथ में कामादिक - विकट घाटियां हैं,उसमें इसे एकाकी चलना है । हे बाबा ! इस संसार में तेरे संग चलने वाला तेरा साथी कोई भी नहीं है । यह धन जनादिक सब तो हाट की वस्तुओं के फैलाव के समान है अर्थात् हटवाड़े के बाजार की वस्तुओं के समान है । जैसे उन वस्तुओं का फैलाव सांयकाल नहीं रहता है, वैसे ही ये सब न रहने वाले हैं । जैसे सांयकाल को आकर वृक्ष पर बैठने वाले पक्षी प्रातः चले जाते हैं, वैसे ही तेरे कुटुम्बी चले गये हैं, हे मूर्ख बता इनमें तेरा कौन है ? सभी प्राणी पथिक हैं और मार्ग में चल रहे हैं । स्थिर रहने वाला कोई भी नहीं है । अन्त समय आने पर कोई का पहले और कोई का पीछे वियोग होगा । अरे बाबा ! यह शरीर कच्चे घट के समान शीघ्र नष्ट होने वाला है, इसके स्थायी रहने का क्या भरोसा है ? तेरी आयु रात्रि व्यतीत हो गई है अब क्यों सो रहा है ? शीघ्र ही मार्ग के लिये पुण्य रूप खर्च१ संग्रह करके सावधान क्यों नहीं होता है ? अर्थात् तुझे परोपकार और हरि भजन ही करना चाहिये ।
उक्त उपदेश सुनकर वृद्ध ने प्रणाम करके कहा - स्वामिन् ! आपका कथन यथार्थ ही है । मैं यथाशक्ति परोपकार और हरिभजन ही कर सकता हूँ अन्य साधन मुझ वृद्ध से होना भी कठिन है । आपने मेरे से होने योग्य साधन ही बताया है । अब आपके उपदेशानुसार ही करूंगा । ऐसा कहकर प्रणाम करके वृद्ध चला गया । 
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें