सोमवार, 10 अक्तूबर 2016

=३४=

卐 सत्यराम सा 卐
ज्यों राखै त्यों रहेंगे, मेरा क्या सारा ।
हुक्मी सेवक राम का, बन्दा बेचारा ॥ 
साहिब राखै तो रहे, काया मांही जीव ।
हुक्मी बन्दा उठ चले, जब ही बुलावे पीव ॥ 
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साभार ~ Anand Nareliya
इंग्लैड़ में ऐसा हुआ पिछले महायुद्ध में। एक नगर के चौराहे पर जीसस की मूर्ति थी। जर्मनों के बम गिरे। वह मूर्ति खंड़— खंड़ होकर टूट गयी। टुकड़े—टुकड़े होकर गिर गयी। युद्ध के बाद लोगो ने सारे टुकड़े इकट्ठे कर लिये, और उन सारे टुकड़ों को मिलाकर मूर्ति बनानी चाही। मूर्ति तो बन गयी, सिर्फ दो हाथ के टुकड़े नहीं मिले। जो कलाकार उस मूर्ति को जोड़ रहा था, उसने बड़ी खोज की मगर वे दो हाथ नहीं मिले सो नहीं मिले। उसने एक अदभुत काम किया। उसने मूर्ति के नीचे एक पत्थर लगा दिया—मूर्ति अब भी खड़ी है। उसने एक पत्थर लगा दिया। वह पत्थर बड़ा प्यारा है, वह हाथ से भी ज्यादा काम का पत्थर हो गया है। उसने पत्थर पर लिख दिया है कि मेरे हाथ तुम हो, मेरे पास और कोई हाथ नहीं हैं।
परमात्मा के हाथ तुम हो। इसलिए तो इस देश में हमने परमात्मा को सहस्रबाहु कहा है—हजारों हाथ वाला। सब हाथ उसके हैं। सब मन उसके हैं। सब देहें। उसकी हैं। एक बार तुमने सब समर्पण कर दिया, फिर परमात्मा जो इशारा करता हो उसी इशारे से चल पड़ना। अगर कहे—जंगल, तो जंगल। अगर कहे—बाजार, तो बाजार। फिर तुम रहे ही नहीं। अब इसे प्रसाद पूर्वक स्वीकार करना। अब तुम अपनी पत्नी के पास नहीं जा रहे हो, परमात्मा भेज रहा है तो जा रहे हो। अब तुम अपने बेटे के पास नहीं जा रहे हो, यह परमात्मा का ही बेटा है, जिसकी रक्षा के लिए तुम्हें भेज रहा है तो तुम जा रहे हो।
अगर कोई व्यक्ति इतनी मौन और शांति से जीवन को जिए कि जैसा परमात्मा जिलाए वैसा ही जीता चला जाए, तो यह जगत ही मुक्ति हो जाता है।...osho

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