मंगलवार, 11 अक्तूबर 2016

= परिचय का अंग =(४/१२९-३०)

॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥
**श्री दादू अनुभव वाणी** टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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**= परिचय का अँग ४ =** 
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*जिज्ञासु उपदेश प्रश्नोत्तरी*
ब्रह्म शून्य तहं क्या रहे ? आतम के अस्थान ?
काया अस्थल क्या बसे ? सद्गुरु कहैं सुजान ॥१२७॥
१२७ - १४७ में जिज्ञासुओं के प्रश्नों के उत्तर देते हैं - १२७ में प्रतिलोम क्रम से वीरबल के प्रश्न हैं - हे श्रेष्ठ ज्ञान सम्पन्न सद्गुरो ! मायादि विकारों से शून्य ब्राह्मी स्थिति को प्राप्त मुक्त पुरुष के क्या लक्षण हैं ? साँसारिक विषयों से विरक्त, आत्मा को शरीर से भिन्न मानकर सबको सम - भाव से देखना रूप आत्म स्थिति को प्राप्त मुमुक्षु के क्या लक्षण हैं ? और स्थूल शरीर को ही आत्मा मानकर, उसी के भरण - पोषण में संलग्न रहने वाले मानव के क्या लक्षण हैं ? आप मेरे उक्त प्रश्नों के उत्तर देने की कृपा करें ।
काया के अस्थल रहें, मन राजा पँच प्रधान ।
पच्चीस प्रकृति तीन गुण, आपा१ गर्व२ गुमान३॥१२८॥
१२८ - १३० में अनुलोम क्रम से वीरबल के प्रश्नों का उत्तर दे रहे हैं - शरीर को ही आत्मा मानने वाले का मन राजा के समान इच्छानुसार धर्माधर्म में विचरता रहता है । पँच ज्ञानेन्द्रियों की मँत्रियों के समान प्रधानता रहती है अर्थात् वे भी मन की इच्छानुसार विहित, अविहित विषयों में भ्रमण करती रहती हैं । पच्चीस प्रकृति(पृथ्वी की पाँच - १ अस्थि, २ मेद, ३ क्षुधा, ४ रोध, ५ भय, । जल की पाँच - १ त्वक, २ मूत्र, ३ तृषा, ४ भ्रमण, ५ मोहादिक । अग्नि की पाँच - १ माँस, २ रक्त, ३ आलस्य, ४ उर्ध्व गमन, ५ क्रोध । वायु की पाँच - १ नाड़ी, २ वीर्य, ३ संगम, ४ अतिनिर्गमन, ५ काम । आकाश की पाँच - १ रोम, २ कफ, ३ निद्रा, ४ उच्च स्थिति, ५ लोभ) सतोगुण, रजोगुण, तमोगुण में मेरा-पन१ विद्या रूप गुणादि - का अभिमान२ और शारीरिक - शक्ति३ आदि का अभिमान इत्यादिक होना ही कायास्थल के लक्षण हैं ।
आतम के अस्थान हैं, ज्ञान ध्यान विश्वास ।
सहज शील सँतोष सत, भाव भक्ति निधि पास ॥१२९॥
सत्यासत्य का विवेक रूप ज्ञान, सच्छास्त्र में विश्वास, स्वाभाविक ब्रह्मचर्य, यथालाभ सँतोष, सत्यभाषण का अभ्यास, गुरुजनों में श्रद्धा, भगवान् की भक्ति, भगवत् स्वरूप का ध्यान, इत्यादिक दैवीगुण रूप निधि, शरीर से भिन्न आत्मा मानने वाले विरक्त मुमुक्षु के पास रहती है ।
(क्रमशः)

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