शुक्रवार, 7 अक्तूबर 2016

=२७=

#daduji 
卐 सत्यराम सा 卐

दादू एक सुरति सौं सब रहैं, पंचों उनमनि लाग । यहु अनुभव उपदेश यहु, यहु परम योग वैराग ॥ दादू सहजैं सुरति समाइ ले, पारब्रह्म के अंग । अरस परस मिल एक ह्वै, सन्मुख रहबा संग ॥ ============================= साभार ~ Pradhyuman Joshi
भगवत्ता भविष्य में नहीं है.....
तुम्हारी भगवत्ता वर्तमान में है, यहां और अभी है। ठीक इसी क्षण तुम भगवान हो। हां, तुम्हें इसका बोध नहीं है। तुम सही दिशा में नहीं देख रहे हो, या तुम उससे लयबद्ध नहीं हो। इतनी ही बात है। जैसे कि एक रेडियो कमरे में रखा है। ध्वनितरंगें अभी भी यहां से गुजर रही हैं; लेकिन रेडियो किसी तरंग विशेष से नहीं जुड़ा है। तो ध्वनि अव्यक्त है, अप्रकट है। तुम रेडियो को तरंग विशेष से जोड़ दो और ध्वनि तरंग प्रकट हो जाएगी। बस लयबद्ध होने की बात है, तालमेल भर बैठाना है। यह लयबद्ध होना ही ध्यान है। और जब तुम लयबद्ध होते हो, अव्यक्त व्यक्त हो जाता है, अप्रकट प्रकट हो जाता है।
लेकिन स्मरण रहे, कामना मत करो। क्योंकि कामना तुम्हें शून्य नहीं होने देगी। और अगर तुम शून्य नहीं हो तो कुछ नहीं होगा, क्योंकि वहां अवकाश ही नहीं है। तो तुम्हारा अव्यक्त स्वभाव व्यक्त नहीं होगा। उसे व्यक्त होने के लिए, अवकाश चाहिए, स्थान चाहिए, शून्यता चाहिए।
तंत्र सूत्र

ओशो

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