शुक्रवार, 7 अक्तूबर 2016

= सर्वंगयोगप्रदीपिका (च.उ. १९-२०) =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
https://www.facebook.com/DADUVANI
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*सर्वांगयोगप्रदीपिका(ग्रंथ२)*
**ज्ञानयोग नामक = चतुर्थ उपदेश =**
*= मृत्तिकाभाजन का उदाहरण =*
*ज्यौं पृथ्वी तें भाजन भाई ।*
*बिनसि गये ता मांझ बिलाई ।* 
*यौं आतम तें बिश्व प्रकासै ।*
*कहन सुनन कौं दूजा भासै ॥१९॥*
जैसे मिट्टी(पृथ्वी) के पात्र घट-शराब आदि विनष्ट हो कर मिट्टी में ही विलीन हो जाते हैं उसी तरह यह सारा विश्व आत्मा से ही प्रकाशित(चैतन्यमय) होता है । दोनों का अलग-अलग दिखायी देना तो भ्रम-मात्र है ॥१९॥ 
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*= कनकभूषण का उदाहरण =* 
*ज्यौं कंचन के भूसन नाना ।*
*भिन्न-भिन्न करि नांव बखाना ।* 
*गारे सर्ब एक ही हूवा ।*
*यौं आतमा बिश्व नहिं जूवा ॥२०॥*
जैसे सोने के आभूषण कहने-सुनने भर के अलग-अलग नामवाले होते हैं और गलाने पर एक सोना ही रह जाता है, आभूषण नहीं; उसी तरह यह सारा विश्व ब्रह्ममय है, ब्रह्म से पृथक् नहीं ॥२०॥
(क्रमशः)

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