गुरुवार, 8 दिसंबर 2016

= पंचेन्द्रियचरित्र(मी.च. १९-२०) =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
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*(ग्रन्थ ३) पंचेन्द्रियचरित्र*
*मीनचरित्र(३)=(२) वानर कथा*
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*कपि भीतरि बांधी मूठी ।*
*निकसै नहिं बहुरि अपूठी ॥*
*कपि गागरि दंतनि खंडै ।*
*शठ भीतरि मूठि न छंडै ॥१९॥* 
बन्दर ने हाँडी में हाथ डालकर मिठाई हाथ में मुट्ठी बाँध ली । वह मुट्ठी, छेद संकीर्ण होने के कारण, बाहर नहीं निकल पायी । अब क्या था ! बन्दर ने बहुत उछल-कूद मचाना शुरू किया । कभी दाँतों से हाँडी को काटता, कभी खिसिया कर और कुछ दाव न चलते देख किचकिचाने लगता । पर वह मूर्ख जिह्वालौल्य के कारण मिठाई के लोभ में अपनी मुट्ठी नहीं खोलता था ॥१९॥ 
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*अति किचकिचाइ भो सोरा ।*
*बाजीगर आवा दोरा ।*
*उनि रसरी गर महिं नाई ।*
*तब गागरि फोरि अडाई ॥२०॥* 
बन्दर के बहुत ज्यादा किचकिचाने तथा शोर करने पर बाजीगर को जब यह विश्वास हो गया कि बन्दर फन्दे में फँस गया तो वह दौड़कर वहाँ आया । उसने जल्दी से बन्दर के गले में रस्सी डाल दी और हांडी फोड़ कर उसका हाथ छुड़ा दिया ॥२०॥
(क्रमशः)

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