गुरुवार, 8 दिसंबर 2016

= विन्दु (२)८८ =

॥ दादूराम सत्यराम ॥
**श्री दादू चरितामृत(भाग-२)**
लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥

**= विन्दु ८८ =**

**= जैसा पटेल को उपदेश =** 
एक दिन जैसा पटेल हाथ जोड़े हुये कुछ जिज्ञासा से दादूजी के सन्मुख बैठा था । उसकी मनोभावना को जानकर, दादूजी ने उसके अधिकार के अनुसार उपदेश देने के लिये यह पद बोला - 
जप गोविन्द विसर जनि जाय, 
जन्म सफल करिये लै लाय ॥टेक॥
हरि सुमिरण से हेत लगाय, 
भजन प्रेम यश गोविन्द गाय ॥ 
मानुष देह मुक्ति का द्वारा, 
राम सुमरि जग सिरजनहरा ॥१॥ 
जब लग विषम व्याधि नहिं आई, 
जब लग काल काया नहिं खाई । 
जब लग शब्द पलट नहिं जाई, 
तब लग सेवा कर राम राई ॥२॥
अवसर राम कहसि नहिं लोई, 
जन्म गया तब कहै न कोई । 
जब लग जीवे तब लग सोई, 
पीछैं फिर पछतावा होई ॥३॥ 
सांई सेवा सेवक लागे, 
सोई पावे जे कोई जागे । 
गुरु मुख भरम - तिमिर सब भागे, 
बहुर न उलटे मारग लागे ॥४॥ 
ऐसा अवसर बहुर न तेरा, 
देख विचार समझ जिय मेरा । 
दादू हार जीत जग आया, 
बहुत भांति कह कर समझाया ॥५॥ 
हितकर उपदेश कर रहे हैं - अरे ! गोविन्द का नाम जप, गोविन्द को भूलकर संसार में क्यों भटक रहा है ? भगवान् के स्वरूप में वृत्ति लगाकर अपने जन्म को सफल कर । हरि - स्मरण में स्नेह लगा कर भजन कर । प्रेम से गोविन्द का यशगान कर । मनुष्य देह मुक्ति महल का द्वार है, इसमें जगत् के रचने वाले राम का स्मरण कर । जब तक शरीर में भयंकर रोग नहीं आवे, शब्द नहीं बदले अर्थात् वाणी विकल नहीं हो और शरीर को काल नहीं खाय उससे पहले ही विश्व के राजा - राम की भक्ति करले । लोग राम भजन करने के समय में तो भजन करते नहीं हैं फिर जन्म व्यतीत हो जायगा तब अन्त समय में राम - राम कोई भी न कह सकेगा । जब तक सुख से जीते हैं, तब तक तो मोह निद्रा में सोते हैं फिर पीछे वृद्धावस्था में दुःख पडेगा तब पश्चात्ताप ही होगा । जो कोई सेवक मोह निद्रा में जागकर प्रभु की भक्ति में लगे हैं, वे ही प्रभु को प्राप्त करेंगे । गुरु मुख द्वारा सुने उपदेश से भ्रम रूप संपूर्ण अंधकार हृदय से भाग जाता है, तब प्राणी विपरीत मार्ग में नहीं जाता है । अरे मेरे प्रिय जीव ! विचार द्वारा समझ कर देख, ऐसा समय पुनः तेरे हाथ न लगेगा । मैंने तुझे बहुत प्रकार कह - कह कर समझाया है कि - तू जगत् में जीतने के लिये मनुष्य शरीर में आया है, फिर हार क्यों रहा है ? भजन - विचार करके मोह - दल को शीघ्र जै कर । 
(क्रमशः)

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