रविवार, 30 अप्रैल 2017

= विन्दु (२)९८ =

#daduji

॥ दादूराम सत्यराम ॥
*श्री दादू चरितामृत(भाग-२)* 
लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*= विन्दु ९८ =*
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*= रज्जबजी के नेत्र बन्द =* 
दादूजी महाराज के गुफा में प्रवेश करने के पश्चात् रज्जबजी ने अपने नेत्र बन्द कर लिये । फिर अन्य गुरु भाई संतों ने पूछा - नेत्र बन्द कैसे कर लिये हैं, खोलते क्यों नहीं हो ? तब रज्जबजी ने कहा - इस मायिक संसार में देखने योग्य गुरुदेव दादूजी महाराज का शरीर ही था, वह तो अब रहा नहीं है फिर किसको को देखने के लिये नेत्र खोलूँ । अब तो मैं शरीर निर्वाह के लिये ही नेत्र खोला करूँगा, विशेष रूप से बन्द ही रखूंगा । फिर रज्जबजी ने जीवन भर वैसा ही व्यवहार रक्खा । आवश्यकता होने पर ही नेत्र खोलते थे, वैसे ही बन्द ही रखते थे । 
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*= महाप्रयाण यात्रा की समाप्ति =*
फिर सब संत तथा भक्त लोग पर्वत पर चढ़ गुफा के द्वार पर पहुँचे । तब गुफा से आवाज आई - “गुफा के भीतर कोई भी नहीं आवे । अब सब हरि चिन्तन करते हुये अपने - अपने स्थानों को चले जायें ।” उक्त वाणी सुनकर सब द्वार पर ही रुक गये और सब गुफा द्वार पर साष्टांग दंडवत करके अपने - अपने स्थानों को जाने लग लगे । तब गरीबदासजी ने कहा - श्री स्वामी दादूजी महाराज ने इस गुफा में प्रवेश किया है । अतः यह गुफा भविष्य में हमारे समाज का तीर्थ होकर रहेगी । हम लोग सब यहां आकर श्रद्धा भाव से साष्टांग दंडवत करते रहेंगे । श्री दादूजी का भी ऐसा ही संकेत उनकी वाणी में मिलता है । इस समय सब लोग वह संकेत सुनें मैं सुना रहा हूं - 
“प्रीतम के पग परसिये, मुझ देखण का चाय । 
तहाँ ले शीश नमाइये, जहां धरे ते पाँव ॥” 
प्रियतम परमात्मा के चरणों का जिन्होंने स्पर्श किया अर्थात् ब्रह्म का साक्षात्कार किया है, ऐसे संतों के दर्शन करने का मेरे मन में अति उत्साह बना रहता है और वे महात्मा जहां चरण रखें उस स्थान पर जाकर श्रद्धा भाव से उस स्थान को मस्तक नमाना चाहिये । अतः श्री दादूजी महाराज का अन्तिम दर्शन इस गुफा के द्वार पर ही हम सब ने किया है । इसलिये हम समय समय पर यहां आकर दंडवत प्रणाम किया करेंगे और भविष्य में चरण स्थापना स्थान भी यही रहेगा । यहां दादूजी महाराज के चरण चिन्ह स्थापना किये जायेंगे । दादूजी महाराज की शिष्य परंपरा का यह तीर्थ माना जायगा और जहां पालकी रख दी थी वहां पालकी में पुष्प ही बचे थे । अतः आगे चलकर वहां पुष्प प्रतिष्ठा हो जायगी । यहां दादूजी महाराज पालकी छोड़कर अदृश्य हुये थे, अतः इस स्थान का नाम दादू पालकी प्रसिद्ध होगा । 
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अब महाप्रयाण यात्रा का कार्यक्रम पूर्ण हो गया है । अब सब लोग हरि चिन्तन करते हुये अपने - अपने ग्रामों को चले जायें । आगे के कार्यक्रम की सूचना आप लोगों को समय - समय पर मिलती रहेगी । फिर सब लोग गुफा द्वार पर साष्टांग दंडवत करके अपने - अपने ग्रामों को चल दिये । दादूजी के शिष्य संत तथा नारायणा नरेश नारायणसिंह और उनके भाई भाकरसिंह आदि तथा नारायणा के सब भक्त लोग हरि नाम संकीर्तन करते हुये साथ साथ नारायणा नगर की ओर चल दिये । 
= इति श्री दादूचरितामृत विन्दु ९८ समाप्तः । =
(क्रमशः)

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