शुक्रवार, 26 मई 2017

= ६४ =

卐 सत्यराम सा 卐
दादू कहिए कुछ उपकार को, मानै अवगुण दोष ।
अंधे कूप बताइया, सत्य न मानै लोक ॥ 
=========================
साभार ~ @pawan sharma(G+)

बाजार में किसी दुकान के आगे लिखा था यहां सब कुछ मिलता है ... मैं डरा सहमा सा उस दुकन दार से बोला बाबूजी कहीं मानवता मिलेगी क्या बस इतना कहते ही दुकन दार मेरा हाथ पकड़ कर दुकान के पीछे ले गया और बोल पड़ा बेटे किसी घराने के लगते हो क्या मुसीबत आगई जो आज इतनी अनमोल चीज खरीदने निकले हो... 
.
मैंने कहा बाबू जी बड़ी लम्बी कहानी है, मैं बच्चा था तब मेरे गाँव में गणगोर का मेला लगता था जिसमे सभी घरों से महिलायें सजधज कर मंगल गान करती हुई गाँव के कुवे के पास आती और बड़े बूढ़े लोग माल देते.... जवान लोग ऊंट की दोड़ करवाते बच्चे पिपाटी गुबारे और खिलोने लेकर जाते और सब लोग एक दुसरे की बात को बड़े ही ध्यान से सुनते और सबकी इज्जत मान सम्मान में जान की बाजी लगा देते ...
.
और बाबूजी कोई भी गाँव का आदमी किसी रिश्ते वाले गाँव जाता तो उस गाँव में अपने गाँव की बहन बेटी होती उस के पास जाता और सारे गाँव के लोग उस से मिलने आते और जब वो ३,४ दिन बाद विदा लेता तो सभी लोग रुंआसे से हो जाते कितना प्यार था .........
.
कुवे पर पानी खींचने के लिए सभी ऊँची जाति के घरों की बारी आती तो सभी अपने आप रात दिन मेहनत करते और कोई शिकायत का मौका नहीं देते थे और जब घर जाते तो दूसरी बारी वाले को बोल कर जाते भाई कोई कमी रह गई होतो और खींचू पर बिलकुल भी स्वार्थी पन नहीं होता था.... 
.
कोई किसी बहू बेटी को लेने गाँव का सगा जंवाई आता तो उसी के साथ अपनी बहू बेटी को भी भेज देते कि इसको भी छोड़ देना जाते जाते लेकिन कोई डर कोई भय नहीं था और वो भी अपनी बहन बेटी से अधिक ध्यान रखता था कोई लड़का स्कुल नहीं जाता तो मोहल्ले के काका ताऊ का भय दिखलाते घर वाले तो बच्चे की जान सी निकल जाती थी, हर गाँव में ५ पंच होते थे जो निष्पक्ष न्याय करते थे .........
.
और आज सब उल्टा हो गया है मेला तो दूर अगर गाँव की चोक में ४,५ लोग इकठे तभी होते है जब कोई नेता आता है या किसी की अर्थी उठानी होती है ... कोई भाई किसी रिश्ते में जाता है तो अपने भाई की बेटी के घर भी नहीं जाता, अरे क्या मांगती है बेटी, बेटी तो गाँव के हरिजन को देख कर भी रोती है कि आज मेरा कोई आया है पर ये दुनिया कितनी स्वार्थी होगई है की अपनी बहन के आंगन में भी नहीं जाना चाहता है ....
.
अरे बाबू जी किसी के साथ बहन बेटी तो क्या अगर कोई चप्पल भी भेज दो तो वो भी गायब कर जाते हैं .... किसी दुसरे के बच्चे को डराना तो छोड़ो अगर खुद के बालक को भी धमकाने की हिम्मत नहीं होती डर लगता है कहीं सामने न बोल जाये ...... बड़े बूढ़े धीरे और बहुएं तेज आवाज में बोलती हैं किसी को भी देखो सब लूट खसोट में लगे हैं भगवान के दर्शन बिकते हैं स्कुल में प्रमाण पत्र बिकते हैं सरकार चरित्र प्रमाण पत्र बेचती है .......
.
और तो और गाय के नाम पर चारा इकठा करके उसे भी बेच देते है लगता है थोड़े दिनों में आँख के आंसू भी बिकेंगे ..... बाबूजी इसी लिए मुझ से रहा नहीं गया और सोचा थोड़ी मानवता खरीद कर लोगों में बाँट दूँ तो शायद कुछ अच्छा हो जाए लोग कुछ बदल जाए ......
.
उस दुकानदार को चकर सा आया और गिर पड़ा मैंने उसे उठाया और उसके लडके को बोला भाई इसे सम्भालो लड़का बोला आप ने मेरे बाप को मार डाला में मुकदमा करता हूँ ..... उसने पुलिस को बुलाया मैंने पुलिस को पूरा वृतांत सुनाया ठाणे दार गुर्राया और जोर से चक्कर खाकर स्वर्ग सिधाया, मैं वहाँ से भाग आया रस्ते में एक अजीब सी चीख से टकराया उसने अपना नाम मरी हुई मानवता बताया ....
*जय हिन्द*



कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें