शनिवार, 27 मई 2017

= माया का अंग =(१२/२२-४)

#daduji

卐 सत्यराम सा 卐 
*श्री दादू अनुभव वाणी* 
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
*माया का अँग १२*
दादू माया सौं मन बीगड़ा, ज्यों काँजी कर दुग्ध । 
है कोई सँसार में, मन कर देवे शुद्ध ॥ २२ ॥ 
जैसे काँजी से दूध खराब हो जाता है वैसे ही प्राणियों का मन माया से खराब हो गया है । सँसार में ऐसा कोई विरला ही सन्त मिलता है जो माया से बिगड़े हुये मन को शुद्ध कर दे । 
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गँदी सौ गँदा भया, यों गँदा सब कोइ । 
दादू लागे खूब सौं, तो खूब सरीखा होइ ॥ २३ ॥ 
जैसे शुद्ध मन गँदी माया से मिलकर गँदा हो गया है, वैसे ही माया के संग से सब गँदे हो जाते हैं और मैला मन यदि सर्व श्रेष्ठ ब्रह्म - चिन्तन में लगता है तो द्वन्द्वों से रहित होकर श्रेष्ठ सन्तों के मन के समान ही हो जाता है । 
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माया सौं मन रत भया, विषय रस माता । 
दादू साचा छाड़ कर, झूठे रँग राता ॥ २४ ॥ 
जब से मन माया में अनुरक्त हुआ है तभी से विषय - रस में मस्त हो सत्य ब्रह्म का चिन्तन छोड़ कर मिथ्या मायिक राग - रँगादि में आसक्त हो रहा है ।
(क्रमशः)

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