#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*श्री दादू अनुभव वाणी*
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*माया का अँग १२*
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दादू माया सौं मन बीगड़ा, ज्यों काँजी कर दुग्ध ।
है कोई सँसार में, मन कर देवे शुद्ध ॥ २२ ॥
जैसे काँजी से दूध खराब हो जाता है वैसे ही प्राणियों का मन माया से खराब हो गया है । सँसार में ऐसा कोई विरला ही सन्त मिलता है जो माया से बिगड़े हुये मन को शुद्ध कर दे ।
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गँदी सौ गँदा भया, यों गँदा सब कोइ ।
दादू लागे खूब सौं, तो खूब सरीखा होइ ॥ २३ ॥
जैसे शुद्ध मन गँदी माया से मिलकर गँदा हो गया है, वैसे ही माया के संग से सब गँदे हो जाते हैं और मैला मन यदि सर्व श्रेष्ठ ब्रह्म - चिन्तन में लगता है तो द्वन्द्वों से रहित होकर श्रेष्ठ सन्तों के मन के समान ही हो जाता है ।
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माया सौं मन रत भया, विषय रस माता ।
दादू साचा छाड़ कर, झूठे रँग राता ॥ २४ ॥
जब से मन माया में अनुरक्त हुआ है तभी से विषय - रस में मस्त हो सत्य ब्रह्म का चिन्तन छोड़ कर मिथ्या मायिक राग - रँगादि में आसक्त हो रहा है ।
(क्रमशः)
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