सोमवार, 8 मई 2017

= ३० =


卐 सत्यराम सा 卐
साच अमर जुग जुग रहै, दादू विरला कोइ ।
झूठ बहुत संसार में, उत्पत्ति परलै होइ ॥ 
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साभार ~ @Rani Singh

*सत्य की प्यास*

सौभाग्य है उन लोगों का, जो सत्य के लिए प्यासे हो सकें। बहुत लोग पैदा होते हैं, बहुत कम लोग सत्य के लिए प्यासे हो पाते हैं। सत्य का मिलना तो बहुत बड़ा सौभाग्य है। सत्य की प्यास होना भी उतना ही बड़ा सौभाग्य है। सत्य न भी मिले, तो कोई हर्ज नहीं; लेकिन सत्य की प्यास ही पैदा न हो, तो बहुत बड़ा हर्ज है। सत्य यदि न मिले, तो मैंने कहा, कोई हर्ज नहीं है। हमने चाहा था और हमने प्रयास किया था, हम श्रम किए थे और हमने आकांक्षा की थी, हमने संकल्प बांधा था और हमने जो हमसे बन सकता था, वह किया था। और यदि सत्य न मिले, तो कोई हर्ज नहीं; लेकिन सत्य की प्यास ही हममें पैदा न हो, तो जीवन बहुत दुर्भाग्य से भर जाता है।
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और मैं आपको यह भी कहूं कि सत्य को पा लेना उतना महत्वपूर्ण नहीं है, जितना सत्य के लिए ठीक अर्थों में प्यासे हो जाना है। वह भी एक आनंद है। जो क्षुद्र के लिए प्यासा होता है, वह क्षुद्र को पाकर भी आनंद उपलब्ध नहीं करता। और जो विराट के लिए प्यासा होता है, वह उसे न भी पा सके, तो भी आनंद से भर जाता है। इसे पुनः दोहराऊं - जो क्षुद्र के लिए आकांक्षा करे, वह अगर क्षुद्र को पा भी ले, तो भी उसे कोई शांति और आनंद उपलब्ध नहीं होता है। और जो विराट की अभीप्सा से भर जाए, वह अगर विराट को उपलब्ध न भी हो सके, तो भी उसका जीवन आनंद से भर जाता है। जिन अर्थों में हम श्रेष्ठ की कामना करने लगते हैं, उन्हीं अर्थों में हमारे भीतर कोई श्रेष्ठ पैदा होने लगता है।
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कोई परमात्मा या कोई सत्य हमारे बाहर हमें उपलब्ध नहीं होगा, उसके बीज हमारे भीतर हैं और वे विकसित होंगे। लेकिन वे तभी विकसित होंगे जब प्यास की आग और प्यास की तपिश और प्यास की गर्मी हम पैदा कर सकें। मैं जितनी श्रेष्ठ की आकांक्षा करता हूं, उतना ही मेरे मन के भीतर छिपे हुए वे बीज, जो विराट और श्रेष्ठ बन सकते हैं, वे कंपित होने लगते हैं और उनमें अंकुर आने की संभावना पैदा हो जाती है।
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जब आपके भीतर कभी यह खयाल भी पैदा हो कि परमात्मा को पाना है, जब कभी यह खयाल भी पैदा हो कि शांति को और सत्य को उपलब्ध करना है, तो इस बात को स्मरण रखना कि आपके भीतर कोई बीज अंकुर होने को उत्सुक हो गया है। इस बात को स्मरण रखना कि आपके भीतर कोई दबी हुई आकांक्षा जाग रही है। इस बात को स्मरण रखना कि कुछ महत्वपूर्ण आंदोलन आपके भीतर हो रहा है।
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उस आंदोलन को हमें सम्हालना होगा। उस आंदोलन को सहारा देना होगा। क्योंकि बीज अकेला अंकुर बन जाए, इतना ही काफी नहीं है। और भी बहुत-सी सुरक्षाएं जरूरी हैं। और बीज अंकुर बन जाए, इसके लिए बीज की क्षमता काफी नहीं है, और बहुत-सी सुविधाएं भी जरूरी हैं। जमीन पर बहुत बीज पैदा होते हैं, लेकिन बहुत कम बीज वृक्ष बन पाते हैं। उनमें क्षमता थी, वे विकसित हो सकते थे। और एक-एक बीज में फिर करोड़ों-करोड़ों बीज लग सकते थे। एक छोटे-से बीज में इतनी शक्ति है कि एक पूरा जंगल उससे पैदा हो जाए। एक छोटे-से बीज में इतनी शक्ति है कि सारी जमीन पर पौधे उससे पैदा हो जाएं। लेकिन यह भी हो सकता है कि इतनी विराट क्षमता, इतनी विराट शक्ति का वह बीज नष्ट हो जाए और उसमें कुछ भी पैदा न हो।
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एक बीज की यह क्षमता है, एक मनुष्य की तो क्षमता और भी बहुत ज्यादा है। एक बीज से इतना बड़ा, विराट विकास हो सकता है, एक पत्थर के छोटे-से टुकड़े से अगर अणु को विस्फोट कर लिया जाए, तो महान ऊर्जा का जन्म होता है, बहुत शक्ति का जन्म होता है। मनुष्य की आत्मा और मनुष्य की चेतना का जो अणु है, अगर वह विकसित हो सके, अगर उसका विस्फोट हो सके, अगर उसका विकास हो सके, तो जिस शक्ति और ऊर्जा का जन्म होता है, उसी का नाम परमात्मा है। परमात्मा को हम कहीं पाते नहीं हैं, बल्कि अपने ही विस्फोट से, अपने ही विकास से जिस ऊर्जा को हम जन्म देते हैं, जिस शक्ति को, उस शक्ति का अनुभव परमात्मा है। उसकी प्यास आपमें है, इसलिए मैं स्वागत करता हूं।
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लेकिन इससे कोई यह न समझे कि आप यहां इकट्ठे हो गए हैं, तो जरूरी हो कि आप प्यासे ही हों। आप यहां इकट्ठे हो सकते हैं मात्र एक दर्शक की भांति भी। आप यहां इकट्ठे हो सकते हैं एक मात्र सामान्य जिज्ञासा की भांति भी। आप यहां इकट्ठे हो सकते हैं एक कुतूहल के कारण भी। लेकिन कुतूहल से कोई द्वार नहीं खुलते हैं। और जो ऐसे ही दर्शक की भांति खड़ा हो, उसे कोई रहस्य उपलब्ध नहीं होते हैं। इस जगत में जो भी पाया जाता है, उसके लिए बहुत कुछ चुकाना पड़ता है। इस जगत में जो भी पाया जाता है, उसके लिए बहुत कुछ चुकाना पड़ता है। कुतूहल कुछ भी नहीं चुकाता। इसलिए कुतूहल कुछ भी नहीं पा सकता है। कुतूहल से कोई साधना में प्रवेश नहीं करता। अकेली जिज्ञासा नहीं, मुमुक्षा ! एक गहरी प्यास !
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कल संध्या मैं किसी से कह रहा था कि अगर एक मरुस्थल में आप हों और पानी आपको न मिले, और प्यास बढ़ती चली जाए, और वह घड़ी आ जाए कि आप अब मरने को हैं और अगर पानी नहीं मिलेगा, तो आप जी नहीं सकेंगे। अगर कोई उस वक्त आपको कहे कि हम यह पानी देते हैं, लेकिन पानी देकर हम जान ले लेंगे आपकी, यानि जान के मूल्य पर हम पानी देते हैं, आप उसको भी लेने को राजी हो जाएंगे। क्योंकि मरना तो है; प्यासे मरने की बजाय, तृप्त होकर मर जाना बेहतर है।
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उतनी जिज्ञासा, उतनी आकांक्षा, जब आपके भीतर पैदा होती है, तो उस जिज्ञासा और आकांक्षा के दबाव में आपके भीतर का बीज टूटता है और उसमें से अंकुर निकलता है। बीज ऐसे ही नहीं टूट जाते हैं, उनको दबाव चाहिए। उनको बहुत दबाव चाहिए, बहुत उत्ताप चाहिए, तब उनकी सख्त खोल टूटती है और उसके भीतर से कोमल पौधे का जन्म होता है। हम सबके भीतर भी बहुत सख्त खोल है। और जो भी उस खोल के बाहर आना चाहते हैं, अकेले कुतूहल से नहीं आ सकेंगे। इसलिए स्मरण रखें, जो मात्र कुतूहल से इकट्ठे हुए हैं, वे मात्र कुतूहल को लेकर वापस लौट जाएंगे। उनके लिए कुछ भी नहीं हो सकेगा। जो दर्शक की भांति इकट्ठे हुए हैं, वे दर्शक की भांति ही वापस लौट जाएंगे, उनके लिए कुछ भी नहीं हो सकेगा।
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इसलिए प्रत्येक अपने भीतर पहले तो यह खयाल कर ले, उसमें प्यास है? प्रत्येक अपने भीतर यह विचार कर ले, वह प्यासा है? इसे बहुत स्पष्ट रूप से अनुभव कर ले, वह सच में परमात्मा में उत्सुक है? उसकी कोई उत्सुकता है सत्य को, शांति को, आनंद को उपलब्ध करने के लिए? अगर नहीं है, तो वह समझे कि वह जो भी करेगा, उस करने में कोई प्राण नहीं हो सकते; वह निष्प्राण होगा। और तब फिर उस निष्प्राण चेष्टा का अगर कोई फल न हो, तो साधना जिम्मेवार नहीं होगी, आप स्वयं जिम्मेवार होंगे। इसलिए पहली बात अपने भीतर अपनी प्यास को खोजना और उसे स्पष्ट कर लेना है। आप सच में कुछ पाना चाहते हैं? अगर पाना चाहते हैं, तो पाने का रास्ता है।
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एक बार ऐसा हुआ, गौतम बुद्ध एक गांव में ठहरे थे। एक व्यक्ति ने उनको आकर कहा कि 'आप रोज कहते हैं कि हर एक व्यक्ति मोक्ष पा सकता है। लेकिन हर एक व्यक्ति मोक्ष पा क्यों नहीं लेता है?' बुद्ध ने कहा, 'मेरे मित्र, एक काम करो। संध्या को गांव में जाना और सारे लोगों से पूछकर आना, वे क्या पाना चाहते हैं। एक फेहरिस्त बनाओ। हर एक का नाम लिखो और उसके सामने लिख लाना, उनकी आकांक्षा क्या है।'
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वह आदमी गांव में गया। उसने जाकर पूछा। उसने एक-एक आदमी को पूछा। थोड़े-से लोग थे उस गांव में, उन सबने उत्तर दिए। वह सांझ को वापस लौटा। उसने बुद्ध को आकर वह फेहरिस्त दी। बुद्ध ने कहा, 'इसमें कितने लोग मोक्ष के आकांक्षी हैं?' वह बहुत हैरान हुआ। उसमें एक भी आदमी ने अपनी आकांक्षा में मोक्ष नहीं लिखाया था। बुद्ध ने कहा, 'हर एक आदमी पा सकता है, यह मैं कहता हूं। लेकिन हर एक आदमी पाना चाहता है, यह मैं नहीं कहता।'
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हर एक आदमी पा सकता है, यह बहुत अलग बात है। और हर एक आदमी पाना चाहता है, यह बहुत अलग बात है। अगर आप पाना चाहते हैं, तो यह आश्वासन मानें। अगर आप सच में पाना चाहते हैं, तो इस जमीन पर कोई ताकत आपको रोकने में समर्थ नहीं है। और अगर आप नहीं पाना चाहते, तो इस जमीन पर कोई ताकत आपको देने में भी समर्थ नहीं है। तो सबसे पहली बात, सबसे पहला सूत्र, जो स्मरण रखना है, वह यह कि आपके भीतर एक वास्तविक प्यास है? अगर है, तो आश्वासन मानें कि रास्ता मिल जाएगा। और अगर नहीं है, तो कोई रास्ता नहीं है। आपकी प्यास आपके लिए रास्ता बनेगी।
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दूसरी बात, जो मैं प्रारंभिक रूप से यहां कहना चाहूं, वह यह है कि बहुत बार हम प्यासे भी होते हैं किन्हीं बातों के लिए, लेकिन हम आशा से भरे हुए नहीं होते हैं। हम प्यासे होते हैं, लेकिन आशा नहीं होती। हम प्यासे होते हैं, लेकिन निराश होते हैं। और जिसका पहला कदम निराशा में उठेगा, उसका अंतिम कदम निराशा में समाप्त होगा। इसे भी स्मरण रखें, जिसका पहला कदम निराशा में उठेगा, उसका अंतिम कदम भी निराशा में समाप्त होगा। अंतिम कदम अगर सफलता और सार्थकता में जाना है, तो पहला कदम बहुत आशा में उठना चाहिए।
तो इन तीन दिनों के लिए आपसे कहूंगा - यूं तो पूरे जीवन के लिए कहूंगा - एक बहुत आशा से भरा हुआ दृष्टिकोण। क्या आपको पता है, बहुत कुछ इस पर निर्भर करता है आपके चित्त का कि क्या आप आशा से भरकर किसी काम को कर रहे हैं या निराशा से? अगर आप पहले से निराश हैं, तो आप अपने ही हाथ से उस डगाल को काट रहे हैं, जिस पर आप बैठे हुए हैं।
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तो मैं आपको यह कहूं, साधना के संबंध में बहुत आशा से भरा हुआ होना बड़ा महत्वपूर्ण है। आशा से भरे हुए होने का मतलब यह है कि अगर इस जमीन पर किसी भी मनुष्य ने सत्य को कभी पाया है, अगर इस जमीन पर मनुष्य के इतिहास में कभी भी कोई मनुष्य आनंद को और चरम शांति को उपलब्ध हुआ है, तो कोई भी कारण नहीं है कि मैं उपलब्ध क्यों नहीं हो सकूंगा।
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उन लाखों लोगों की तरफ मत देखें, जिनका जीवन अंधकार से भरा हुआ है और जिन्हें कोई आशा और कोई किरण और कोई प्रकाश दिखाई नहीं पड़ता। उन थोड़े-से लोगों को इतिहास में देखें, जिन्हें सत्य उपलब्ध हुआ है। उन बीजों को मत देखें, जो वृक्ष नहीं बन पाए और सड़ गए और नष्ट हो गए। उन थोड़े-से बीजों को देखें, जिन्होंने विकास को उपलब्ध किया और जो परमात्मा तक पहुंचे। और स्मरण रखें कि उन बीजों को जो संभव हो सका, वह प्रत्येक बीज को संभव है। एक मनुष्य को जो संभव हुआ है, वह प्रत्येक दूसरे मनुष्य को संभव है।
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मैं आपको यह कहना चाहता हूं कि बीज रूप से आपकी शक्ति उतनी ही है जितनी बुद्ध की, महावीर की, कृष्ण की या क्राइस्ट की है। परमात्मा के जगत में इस अर्थों में कोई अन्याय नहीं है कि वहां कम और ज्यादा संभावनाएं दी गई हों। संभावनाएं सबकी बराबर हैं, लेकिन वास्तविकताएं सबकी बराबर नहीं हैं। क्योंकि हममें से बहुत लोग अपनी संभावनाओं को वास्तविकता में परिणत करने का प्रयास ही कभी नहीं करते।
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तो एक आधारभूत खयाल, आशा से भरा हुआ होना है। यह विश्वास रखें कि अगर कभी भी किसी को शांति उपलब्ध हुई है, आनंद उपलब्ध हुआ है, तो मुझे भी उपलब्ध हो सकेगा। अपना अपमान न करें निराश होकर। निराशा स्वयं का सबसे बड़ा अपमान है। उसका अर्थ है कि मैं इस योग्य नहीं हूं कि मैं भी पा सकूंगा। मैं आपको कहूं, इस योग्य आप हैं, निश्चित पा सकेंगे....
ओशो.[ ध्यान-सुत्र. प्रवचन-1 ]

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