मंगलवार, 16 मई 2017

= ४६ =

卐 सत्यराम सा 卐
इत घर चोर न मूसै कोई, 
अंतर है जे जानै सोई ॥ टेक ॥
जागहु रे जन तत्त न जाइ, 
जागत है सो रह्या समाइ ॥ १ ॥
जतन जतन कर राखहु सार, 
तस्कर उपजै कौन विचार ॥ २ ॥
इब कर दादू जाणैं जे, 
तो साहिब शरणागति ले ॥ ३ ॥ 
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साभार ~ Vijay Divya Jyoti

*ध्यान : आत्मा का पहरेदार*
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ज्वेलरी की दुकान पर एक सुंदर हार शोकेस में लगा हुआ है। आँख नाम की इंद्री उस हार को देखती है। आँख का काम है खबर देना और आँख जितनी ठीक होगी, उतनी ही ठीक खबर देगी। आँख इसकी खबर देती है मन को और फिर मन कहता है कि हार सुंदर है। मन यहीं नहीं रुकता, वो फिर सोचता है उसे पाने की। यहीं से धुआँ उठता है वासना का। थोड़ा गौर करें, बाहर शरीर है, फिर मन है और फिर और भीतर अर्थात मन के पार वो आत्मा स्थित है यानि कि मन बीच में स्थित है। पहले शरीर(आँख) खबर देता है सुंदर हार की जो कि खबर है विषय वस्तु की। फिर भीतर से आत्मा पर लिप्त वृत्ति से सूचना आती है कि इसे पाना है क्योंकि ये सुंदर है।
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इंद्रियों से जाने वाली सूचना और वृत्ति से आने वाली सूचना का मिलन होता है, बीच में स्थित मन के तल पर और फिर वासना जागती है जो आसक्ति को जन्म देती है। यदि इंद्री(शरीर) खबर दे और अंदर वृत्ति ना हो तो कोई भी सूचना मन के तल पर संकलित नहीं होगी। देह है, उसमें इंद्रियाँ हैं, वो तो खबर देती ही रहेंगी जब तक शरीर है मगर आत्मिक वृत्ति से यदि कोई सूचना नहीं निकलती तो फिर शरीर(इंद्री) से आने वाली सूचना बेकार चली जाती है। परिणाम शून्य हो जाता है। 
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यही वो बिन्दु है जहां गौर करना है, जागृत रहना है कि देह ने अर्थात इंद्री ने खबर दी और भीतर कोई वृत्ति जाग तो नहीं रही अर्थात बाहर से आने वाली सूचना और भीतर से निकलने वाली सूचना का मेल तो नहीं हो रहा। इंद्रियाँ तो अपनी सूचनाएँ आजन्म देती रहेंगी वो भी पल पल लेकिन यदि भीतर के तल से कोई सूचना यदि नहीं आई, तो परिणाम शून्य हो जाएगा।
वास्तव में होता क्या है? जैसे ही कोई सुंदर वस्तु दिखाई पड़ती है, हमारा पूरा ध्यान उस पर चला जाता है क्योंकि हम जागृत नहीं है और भीतर से वासना चुपचाप चली आती है क्योंकि उसे कोई पहरेदार नहीं मिलता। साधक को स्मरण रखना होता है कि जब भी इंद्रियाँ कोई सूचना दें, ध्यान को विषय वस्तु पर ना ले जाकर भीतर देखें कि कोई वृत्ति ज़ोर तो नहीं मार रही, कोई मांग या इच्छा तो पैदा नहीं हो रही? 
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भगवान बुद्ध कहा करते थे कि जिस घर में पहरेदार ना हों, उस घर में चोर घुस जाते हैं और ठीक उसी प्रकार जिस आत्मा के द्वार पर ध्यान(जागृति) ना हो तो वृत्तियाँ घुस जाती हैं। ध्यान पहरेदार है जो जगाए रखता है कि कहीं कोई वासनारूपी चोर तो भीतर नहीं आ रहा? कृष्ण भगवान भी कहते हैं कि वस्तुओं में अनासक्त वही होगा जो वृत्तियों के प्रति जागरूक हो। जो वासना के प्रति सावधान है वो इंद्रियों से आने वाली खबर को और वृत्तियों को मन के तल पर मिलने नहीं देता। अगर कोई व्यक्ति जागकर वृत्तियों को देखने लगे तो इंद्रियाँ तो खबर देंगी ही विषय वस्तु की लेकिन वृत्तियों को उठने का अवसर नहीं मिलेगा। 
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वृत्तियों और इंद्रियों की सूचना के मिलन से, जो कि मन के तल पर होता है, सर्वप्रथम वासना का जन्म होता है और फिर आसक्ति निर्मित होती है। इंद्रियाँ पल पल सूचनाएँ देती हैं और वृत्तियाँ, यदि आप जागृत नहीं हैं तो इन सूचनाओं से मिलकर वासना और आसक्ति का जाल बुन लेती हैं जिसके परिणामस्वरूप जिंदगी दुख बन जाती है। मन के जगत में किसी चीज़ को मिटाना बहुत कठिन है किन्तु किसी वृत्ति को पैदा ना होने देना बहुत सरल है । यदि भीतर के द्वार पर ध्यानरूपी पहरेदार को आप बिठाये रखेंगे तो वृत्तियाँ निर्मित ही ना हो सकेंगी। विषय वस्तु में चैतन्य नष्ट नहीं होगा।

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