बुधवार, 17 मई 2017

= सूक्ष्म जन्म का अंग =(११/४-६)

#daduji


卐 सत्यराम सा 卐 
*श्री दादू अनुभव वाणी* 
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
*सूक्ष्म जन्म का अँग ११*
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सब गुण सब ही जीव के, दादू व्यापैं आइ । 
घट माँहीँ जामे मरे, कोइ न जाने ताहि ॥ ४ ॥ 
सभी जीवों के सभी गुण जीव के मन में आकर व्याप्त होते रहते हैं । शरीर में उनका व्याप्त होना और नष्ट होना ही जन्म - मरण है किन्तु उस जन्म - मरण को विचारादि साधनहीन कोई भी प्राणी नहीं जानता । 
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जीव जन्म जाने नहीं, पलक पलक में होइ । 
चौरासी लख भोगवे, दादू लखे न कोइ ॥ ५ ॥ 
गुण विकारादि के उत्पत्ति - लय रूप जन्म - मरण पलक - पलक में होते ही रहते हैं किन्तु सत्संगादि साधन से रहित बहिर्मुख जीव उनको नहीं जान पाता । इन सूक्ष्म - जन्मादि से प्राणी एक शरीर में स्थित रहते हुये ही चौरासी लक्ष योनियों के सुख - दु:खादि भोग भोगता रहता है किन्तु यह नहीं जान पाता कि अब मैं किस योनि में हूं । कारण, गुण के तीव्र वेग को बहिर्मुख कैसे जान सकता है ? उसे जानने की शक्ति तो उच्चकोटि के अन्तर्मुख सन्त में ही होती है । 
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अनेक रूप दिन के करे, यहु मन आये जाइ ।
आवागमन मन का मिटे, तब दादू रहे समाइ ॥ ६ ॥ 
यह मन दिन के अल्प - काल में भी अनेक मनोरथ रूप आकारों को धारण करता है । एक विषय से दूसरे विषय पर आता है और दूसरे विषय से तीसरे विषय पर जाता है । यदि इस मन का यह आना - जाना मिट जाय तब तो आत्मा ब्रह्म में समा कर अद्वैत रूप से ही रहता है, लेशमात्र भी भेद नहीं रहता ।
(क्रमशः)

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