बुधवार, 3 मई 2017

= १९ =

卐 सत्यराम सा 卐
साधू संगति पाइये, तब द्वन्द्वर दूर नशाइ ।
दादू बोहिथ बैस करि, डूँडे निकट न जाइ ॥ 
जब मानसरोवर पाइये, तब छीलर को छिटकाइ ।
दादू हंसा हरि मिले, तब कागा गये बिलाइ ॥ 
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साभार ~ Rp Tripathi

**सुमति और कुमति ? :: एक संक्षिप्त परिचर्चा**
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सम्मानित मित्रो शास्त्र कहते हैं - 
"सुमति कुमति सबके उर रहहीं ; 
नाथ पुराण निगम अस कहहीं !!
जहाँ सुमति तंह संपति नाना ; 
जहाँ कुमति तंह विपति निधाना" !! 
भावार्थ - सभी शास्त्रों का मत है कि - सुमति और कुमति दोनों सदैव प्रत्येक व्यक्ति के ह्रदय में निवास करती हैं ; परन्तु जो व्यक्ति सुमति को उपयोग में लाता है ; वह जीवन में नाना तरह की संपत्तियों का उपभोग करता है ; और जो कुमति को उपयोग में लाता है ; वह नाना तरह की विपत्तियों से घिरा रहता है !! आइये मित्रो इस आलेख में हम इस महत्त्व-पूर्ण विषय को ; कुछ विस्तार दें - 
मित्रों ; जब भी हम कोई कार्य करते हैं तो परिणाम में हमारे सामने हमेशा दो ही विकल्प होते हैं - या तो हमें अपनी मनोइच्छा के अनुकूल परिणाम की प्राप्ति होती है ; या हमारी मनोइच्छा के प्रतिकूल परिणाम की !! जब हमें अपनी मनोइच्छा के अनुकूल परिणाम प्राप्त होता है ; तो हम सिकंदर की तरह अपनी सफलता पर फूले नहीं समाते ; तथा उमंग और खुशियों के मनोभावों से भर ; हम अधिक से अधिक दिनों तक जीने की चाह करने लगते हैं !! परन्तु जब परिणाम हमें अपनी मनोइच्छा के प्रतिकूल प्राप्त होता है ; तो हिट्लर की तरह अपनी असफलता पर इतने हतोत्साहित हो जाते हैं कि निराशा और हताशा के मनोभावों से भर ; हम जीवन का अंत करने की ही सोचने लगते हैं !! 
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सम्मानित मित्रों ; यह उपरोक्त दोनों स्थितियाँ ; हमारे अहंकार(EGO - Edging God Out) को दर्शित करती हैं ; क्योंकि सफलता और असफलता दोनों को हम अपनी निजी उपलब्धि या अनुपलब्धि मानने लगते हैं !! यह इसी तरह है जैसे - कोई कुत्ता(DOG) बैलगाड़ी के नीचे चल रहा हो ; और वह सोचे की इस बैलगाड़ी को मैं चला रहा हूँ !! 
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इसी तरह अहंकार से वशीभूत होने पर हम सोचते हैं कि - सब कुछ हमारे कारण/नियंत्रण से होता है ; जबकि वस्तुस्थिति इसके पूर्णतः विपरीत है !! हमारे क्या ; किसी भी जीव के नियंत्रण में तो उसके शरीर को जीवित/संचालित रखने वाली एक स्वांश भी नहीं है !! इस संसार की सम्पूर्ण गतिविधियों का कारक/संचालक तो ; एक मात्र सर्वशक्तिशाली परमात्मा(GOD) है ; कोई अन्य नहीं !! परन्तु सम्मानित मित्रों ; यह बात समय रहते किसी-किसी सौभाग्य-शाली को ही समझ में आ पाती है !! अन्य सभी तो महाभारत के नायक धनुर्धर अर्जुन की तरह ; जीवन के अंतिम समय में समझ पाते हैं कि -
पुरुष नहीं बलवान है ; समय होत बलबान !
भीलन लूटीं गोपिका ; वही अर्जुन वही बाण !! 
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हाँ शास्त्र कहते हैं कि यदि हमारे वश में यदि कुछ है ; तो वह केवल है केवल एक क्रिया - जो स्वांश अभी परमात्मा की कृपा से इस शरीर में चल रही है ; उसे प्रभु द्वारा प्रदत्त अनमोल वस्तु समझ ; प्रसाद रूप में प्रसन्नता से ग्र्हण करें !! यदि हम स्वांश को प्रसन्नता-पूर्वक लेने का पुरुषार्थ करने में हम सफल होते हैं ? तो हम भक्तों की तरह जीवन बितायेंगे !! अर्थात हमारी स्मृति में यह याद सदा बनी रहेगी कि - जिस तरह शिशु की रक्षा उसके माता-पिता या अभिभावक स्वतः करते हैं ; उसी तरह परमात्मा भी हमारी तथा अन्य सभी की रक्षा कर रहा है !! जो हमारे या अन्य के जीवन के विकास के लिए सर्वाधिक उपयुक्त है ; वह सदैव हमें और अन्य को दे रहा है ; उससे अन्य कभी कुछ नहीं !! क्योंकि हम सब उसके बालक हैं ; और सिर्फ वही जानता है कि हमारे या अन्य के जीवन के विकास के लिए ; क्या उपयुक्त है ; क्या नहीं !! इस तरह की अहंकार रहित बुद्धि को मित्रों ; सुमति कहते हैं !! 
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परन्तु मित्रों ; जब हम प्रभु द्वारा निरन्तर दी जाने वाली स्वांशों को ; प्रसाद रूप में प्रसन्न मुद्रा में ग्र्हण करने का पुरुषार्थ नहीं कर पाते ; तो हम आस्थाहीन जीवन बिताते हैं !! जिसके परिणाम स्वरूप हम दिन प्रति दिन; नित-नवीन परेशानियों अर्थात ; चिंताओं ; पश्चातापों ; शिकवा शिकायतों आदि के भावों से घिरते जाते हैं !! इस तरह की आस्था/कृतज्ञता हीन ; अहंकार के भाव से भरी हुई बुद्धि को ; कुमति कहते हैं ; जिसे शास्त्रों ने विपत्तियों की खान बताया है !! अतः मित्रों हमें आवश्यकता है - प्रत्येक परिस्थिति में ; प्रत्येक स्वांश को ; प्रभु का प्रसाद समझ ; प्रसन्नता पूर्वक ग्र्हण करने के पुरुषार्थ में सफलता हासिल करने की !! दूसरे शब्दों में - 
हारिये ना हिम्मत ; बिसारिये ना राम ; के महान जीवनोपयोगी सूत्र को ; २४x७ याद रख ; प्रत्येक परिस्थिति में शांत और सहज हो जीवन विताने की !! क्योंकि तभी हमारी सद्बुद्धि जागृत रहेगी ; तथा हमें याद रहेगा कि -
१. जितने कष्ट कंटकों में है ; जिनका जीवन सुमन खिला !
गौरव गंध उन्हें उतना ही ; यत्र तत्र सर्वत्र मिला ....!! 
२. करते हो तुम भगवन ; मेरा नाम हो रहा है !
तेरी कृपा से प्रभुजी ; सब काम हो रहा है !! 
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उपरोक्त से सहमत हैं ना सम्मानित मित्रों ? 
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********ॐ कृष्णम् वन्दे जगत गुरुम********

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