सोमवार, 29 मई 2017

= ७० =

#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
साच न सूझै जब लगै, तब लग लोचन नांहि ।
दादू निर्बंध छाड़ कर, बंध्या द्वै पख माँहि ॥ 
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साभार ~ Rajnish Gupta
*(((((((( गुणो को अपनाओ ))))))))*
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एक महात्मा जी अपने शिष्यों को रामायण, महाभारत, गीता, वेद-पुराण आदि की नीति कथाएं सुनाते और उन्हें इन ग्रंथों के आचरण को अपने निजी जीवन में शामिल करने का आग्रह करते ताकि उनका भविष्य सुखद हो.
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महात्मा जी जो संदेश देते उसके अनुसार उनका आचरण भी था. संयमित और अनुशासित जीवन, लोभ-मोह से दूर थे किसी भी सांसारिक वस्तु के प्रति कोई आसक्ति नहीं थी. उनका नियम था कि प्रवचन के बाद यदि किसी शिष्य में मन में कोई शंका है तो उसका निवारण भी शास्त्र सम्मत तरीके से किया करते थे. एक दिन एक शिष्य प्रवचन के बाद उनके पास आया. उस दिन महात्मा जी ने रामायण के बाल कांड का प्रसंग सुनाया था और आदर्श पुरूष की जीवन चर्या पर प्रवचन किया था. व्यक्ति ने पूछा- गुरू जी क्या रामायण के उपदेश सही हैं, या मनगढ़ंत ?
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गुरू जी मुस्कुराए. वह समझ गए कि यह कोई रटा-रटाया तोता भर है जो प्रवचन को बस जैसे कहा जाता है वैसे सुन लेता है उसका कोई चिंतन-मनन नहीं करता. महात्मा जी बोले- जब रामायण की रचना हुई थी तब मैं नहीं था. जब श्री राम वन में भटक रहे थे, तब मेरा कोई अस्तित्व नहीं था. मेरा ज्ञान भी अभी उतना पक्का नहीं कि रामायण की प्रासंगिकता पर कोई टिप्पणी कर सकूं. हां इतना जरूर कह सकता हूं कि रामायण के अध्ययन से मिलने वाली शिक्षा से सुधर कर मैं आज यहां हूं जहां लोग सम्मान दे रहे हैं. चाहो तो तुम भी इसका प्रयोग आरंभ करो और जीवन को सुधार कर परिवर्तन को स्वयं महसूस करो.
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*धर्मग्रंथों या नीतिग्रंथों की प्रासंगिकता पर प्रश्न उठाने से अच्छा है उसके कुछ गुणों को अपनाकर देखा जाए. विज्ञान प्रयोगशाला में परीक्षण के सिद्धांत की बात कहता है. मनुष्य के जीवन से बड़ी लेबोरेट्री क्या होगी. जो धर्मग्रंथों का माखौल उड़ाने लगें उन्हें आप कम से कम एक ऐसा आदर्श बदलाव जीवन में लाने को कहें जो हमारे आराध्य देवों में थे. जीवन में आए परिवर्तन के साथ ही उनके आंखों पर पड़ी पट्टी उतर जाएगी*.
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*(((((((((( जय जय श्री राधे ))))))))))*
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