मंगलवार, 30 मई 2017

= माया का अंग =(१२/३१-२)

#daduji


卐 सत्यराम सा 卐 
*श्री दादू अनुभव वाणी* 
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
*माया का अँग १२*
*शिश्न स्वाद* 
दादू विषय के कारणै रूप राते रहें, 
नैन नापाक यों कीन्ह भाई । 
बदी की बात सुनत सारे दिन, 
श्रवण नापाक यों कीन्ह जाई ॥ ३१ ॥ 
३१ - ३२ में कहते हैं - राग पूर्वक अविहित भोगों में प्रवृत्त होने से इन्द्रियाँ और शरीर अपवित्र हो जाते हैं - हे भाई ! विषयासक्ति के कारण नेत्र स्त्रियादि के सुन्दर रूप में अनुरक्त रहते हैं, इसलिए अपवित्र हो जाते हैं । दुर्जनों में जाकर सारे दिन पर - निन्दादि बुरी बातेँ सुनते हैं, इसीलिए श्रवण अपवित्र हो जाते हैं । 
स्वाद के कारणै लुब्धि१ लागी रहे, 
जिव्हा नापाक यों कीन्ह खाई ।
भोग के कारणै भूख लागी रहे, 
अँग नापाक यों कीन्ह लाई ॥ ३२ ॥ 
अखाद्य के स्वाद के लिए लोभ१ ग्रसित वृत्ति अखाद्य पदार्थों में लगी रहती है और उसे खाता है, तब जिव्हा अपवित्र हो जाती है । नारी प्रसंग के लिए अभिलाषा लगी रहती है, उसके शरीर को स्पर्श करता है, तब शरीर अपवित्र हो जाता है । उसकी भोगाशा कभी समाप्त नहीं होती ।
(क्रमशः)

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