शुक्रवार, 26 मई 2017

= माया का अंग =(१२/१९-२१)

#daduji

卐 सत्यराम सा 卐 

*श्री दादू अनुभव वाणी* 
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
*माया का अँग १२*
मन की मूठि न माँडिये, माया के नीशाण । 
पीछे ही पछताहुगे, दादू खूटे बाण ॥ १९ ॥ 
माया रूप लक्ष्य पर, माया से ही कल्याण होगा, ऐसा निश्चय रूप मूठी विषयाशा - धनुष पर बांधकर श्वासों के बाण मत मारो=मायिक पदार्थों के लिए ही आयु मत व्यतीत करो । ऐसे व्यर्थ श्वास खोने से तुम्हारे श्वास व्यर्थ ही समाप्त हो जायेंगे और पीछे तुम पश्चात्ताप में ही जलोगे । 
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*शिश्न स्वाद* 
कुछ खाताँ कुछ खेलताँ, कुछ सोवत दिन जाइ । 
कुछ विषया रस विलसताँ, दादू गये विलाइ ॥ २० ॥ 
२० में कहते हैं - इन्द्रिय स्वादार्थ प्रयत्न में ही शरीर नष्ट हो जाते हैं - प्राणी के आयु के दिन कुछ तो बाल्यावस्था में खाने खेल ने में, कुछ युवावस्था के विषय - रस उपभोग में और कुछ सोने में चले जाते हैं । ऐसे ही इन्द्रिय भोगों में शरीर नष्ट हो जाते हैं । 
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*संगति - कुसंगति* 
माखन मन पाहन भया, माया रस पीया । 
पाहन मन माखन भया, राम रस लीया ॥ २१ ॥ 
२१ - २८ में संग कुसंग का फल बता रहे हैं - मक्खन के समान कोमल मन भी मायिक विषय - रस के पान करने से पत्थर के समान कठौर हो जाता है और राम - भक्ति - रस के पान करने से पत्थर के समान कठौर मन भी दयादि से युक्त होकर मक्खन के समान कोमल हो जाता है ।
(क्रमशः)

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