शुक्रवार, 26 मई 2017

श्री गुरूदेव का अंग ३(५-८)

#daduji

卐 सत्यराम सा 卐

*दादू कहै सतगुरु शब्द सुनाइ करि, भावै जीव जगाइ ।*
*भावै अन्तरि आप कहि, अपने अंग लगाइ ॥* 
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साभार विद्युत संस्करण ~ Mahant Ramgopal Das Tapasvi
**श्री रज्जबवाणी** 
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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**श्री गुरूदेव का अंग ३**
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गुरु दादू की दृष्टी सौं, देख्या दीरध राम । 
रज्जब समझे साधु सब, सरया सु आतम काम ॥ ५ ॥ 
श्रीगुरु दादू जी की ज्ञान दृष्टी से अति विशाल ब्यापक राम का हमने साक्षात्कार किया है तथा उनके सम्पर्क आने वाले सभी साधक संतों ने निगुर्ण राम का स्वरूप समझा है और उन साधक संतात्माओं का आत्म -परमात्म मिलन रूप कार्य सम्यक् प्रकार सिध्द हुआ है । 
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जन रज्जब सुकृत सबै, गुरु दादू का उपकार ।
मनसा बाचा कर्मना, ता में फेर२ न सार१ ॥ ६ ॥
मुझ दास से जो भी मन, वचन और कर्म से शुभ कर्म हुये हैं, वे सब गुरु दादू जी के उपकार द्वारा ही हुये हैं । मेरा यह वचन सत्य१ ही है, इसनें मिथ्या रूप परिवर्तन२ नहीं हो सकता ।
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रज्जब शिष दादू गुरु, दिन्हा दीरघ ज्ञान । 
तन मन आतम ब्रह्म का, समझ्या सब सु स्थान ॥ ७ ॥ 
मुझ शिष्य को गुरु दादू जी ने महान ज्ञान प्रदान किया है, जिससे मैंने स्थूल शरीर, मन, आतमा और ब्रह्म का स्वरूप रूप स्थान सब प्रकार से भली भांति समझ लिया है वा तन, मन, आतमा और सभी स्थानों में ब्रह्म का व्यापक रूप सम्यक् प्रकार समझ लिया है । 

रज्जब को अज्जब मिल्या, गुरु दादू सु प्रसिध्द । 
व्योरन१ माया ब्रह्म की, सकल बताई विध्द२ ॥ ८ ॥ 
मुझ को अदभुत और सुप्रसिध्द संत प्रवर दादू जी गुरु रूप से प्राप्त हुये हैं, उन्होंने माया और ब्रह्म का विस्तार से विवरण१ करके माया को मिथ्या और ब्रह्म को सत्य तथा निज स्वरूप समझने की सम्पूर्ण विधि२ मुझे बताई है । 
(क्रमशः)

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