卐 सत्यराम सा 卐
*श्री दादू अनुभव वाणी*
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*माया का अँग १२*
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दादू स्वप्ने सूता प्राणियां, कीये भोग विलास ।
जागत झूठा ह्वै गया, ताकी कैसी आस ॥ ४ ॥
सोते समय प्राणी स्वप्न में भोग भोगता है किन्तु निद्रा टूटते ही उसे वे सब मिथ्या ज्ञात होते हैं । वैसे ही आत्म - ज्ञान होने पर मायिक सुख मिथ्या ज्ञात होते हैं । अत: उनकी आशा करना उचित नहीं ।
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यों माया का सुख मन करै, सेज्या सुन्दरी पास ।
अन्त काल आया गया, दादू होहु उदास ॥ ५ ॥
४ में कहे प्रकार से मन मायिक सुखों का उपभोग करता रहता है । शय्या पर सुन्दरी युवती के पास रहता है किन्तु देहान्त का समय आते ही सभी मायिक सुख इसके हाथ से चले जाते हैं । उस समय इसे बड़ा दु:ख होता है । अत: उस दु:ख की निवृत्ति और परमानन्द की प्राप्ति के लिए प्रथम ही विरक्त हो जाना चाहिए ।
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जे नाँहीँ सो देखिये, सूता स्वप्ने माँहि ।
दादू झूठा ह्वै गया, जागे तो कुछ नाँहि ॥ ६ ॥
अज्ञान निद्रा में प्रसुप्त प्राणी जो सत्य नहीं है, उसी मायिक प्रपँच को सत्य देखता है, किन्तु ज्ञान रूप जाग्रत में तो वह मिथ्या हो जाता है । उसका कुछ भी अस्तित्व नहीं मिलता ।
(क्रमशः)
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