रविवार, 21 मई 2017

= पच्ञप्रभाव(ग्रन्थ ९/२५-६) =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
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*= पच्ञप्रभाव(ग्रन्थ ९) =*
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*= ५. ज्ञानी भक्त वर्णन =*
*ज्ञानी इन चार्यौं परै, ताके चिन्ह न कोइ ।*
*ना सो भक्त न जगत है, बंध मुक्त नहीं सोइ ॥२५॥*
सन्तों की एक श्रेणि और है, जिसे ज्ञानी कहते हैं । वह इन उपर्युक्त चारों से ऊपर है । उसको पहचानने के लिये, चारों की तरह कोई ख़ास निशान नहीं है । न उसमे पूरे भक्त के लक्षण घटते हैं, न ही जगत् के । न उसे किसी ख़ास परम्परा से बन्धा हुआ कहा जा सकता है, न उससे पूर्णतः मुक्त ही ॥२५॥
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*ना बहु रक्त विरक्त है, ना बहु भीत अभीत ।*
*तुरीया मैं बरतै सदा, निश्चय तुरीयातीत ॥२६॥*
न वह संसारप्रपंच में आसक्त है, न निरासक्त । न वह किसी से डरता है, न उससे कोई डरता है । वह हमेशा योग की तुरियावस्था में ही वर्तमान रहता है । धीरे-धीरे निश्चय ही(इसी जन्म में) वह तुरियातीतावस्था में(विदेहावस्था) पहुँच जायगा ॥२६॥
(क्रमशः)

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