सोमवार, 15 मई 2017

= पच्ञप्रभाव(ग्रन्थ ९/१५-६)

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
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*= पच्ञप्रभाव(ग्रन्थ ९) =*
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*= ३. कनिष्ठ सन्त का वर्णन=*
*जो दासी के रंग रच्यौ, मन राखै तिहिं पास ।*
*जुवती सौं हलभल करै, कछु इक राखै आस ॥१५॥*
[अब कनिष्ठ(अधम) सन्तों का वर्णन सुनिये--] कुछ ऐसे भी सन्त हैं जो माया दासी को ही घर में प्रधान(गृहणी) का दर्जा दे देते हैं, उसी के साथ मन लगाये रखते हैं । और लोकदिखावे के लिये भक्ति को भी थोड़ा-बहुत प्रश्रय देते हैं, वैसे उसको हीला-हवाला देते रहते हैं ॥१५॥
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*दासी कै संग डोलई, मन राख्यौ बिलंबाइ ।*
*जुवती सौं कबहुंक मिलै, लष्ट पष्ट करि जाइ ॥१६॥*
वे दिनरात माया दासी के संग ही बिताते है, उसी में उनका मन लगा रहता है(धन कमाने का लालच ही उन्हें निरन्तर लगा रहता है) । भक्ति युवती से वे कभी-कभी ही मिलते हैं, वह मिलन भी हृदय से नहीं, ऊपर से बहकाने की ही बात करते हैं ॥१६॥
(क्रमशः)

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