सोमवार, 15 मई 2017

= विन्दु (२)१०० =

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॥ दादूराम सत्यराम ॥
*श्री दादू चरितामृत(भाग-२)* 
लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*= विन्दु १०० =*
*= श्री वाणी प्रतिष्ठा =*
फिर उक्त निश्चय के अनुसार ही एक तखत पर एक चौकी रखकर तथा उस पर सौंज करके श्रीवाणीजी को विराजमान किया और श्रीदादू दयालु महाराज की जय ध्वनि जोर से की गई । गोपालदासजी को पुजारी नियत किया गया । उस समय गोपालदासजी ने वाणीजी के धूप दी और आरती सजाकर आरती उतारी फिर प्रसाद चढा कर सब को बताशों का प्रसाद दिया गया । अब प्रतिदिन प्रातः सौंज को सुधारना, धूप देना, आदि सेवा करना और सांय आरती गाना, अष्टक गाना आदि तभी से आरंभ कर दिया गया तथा सब को बताकर समझा दिया गया कि इसी प्रकार सब स्थानों में श्रीवाणी की प्रतिष्ठा करके प्रतिदिन इसी प्रकार सेवा किया करें । सबने स्वीकार कर लिया और उक्त प्रकार सब करने लगे । 
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नारायणा ‘दादूधाम’ में प्रतिदिन प्रातः एक घंटा दादूवाणी की कथा भी करना आरंभ कर दिया गया । और आदेश दिया गया कि शिक्षित सभी संतों को वाणीकी कथा करना ही चाहिये । कथा द्वारा वाणी के विचारों से कथावाचक और श्रोता दोनों का ही कल्याण होगा । इस प्रकार नाना सामाजिक विधि विधान सब समाज के संतों तथा भक्तों को अवगत करा दिये, जिससे उनका निरवाह होता रहे । अब तक ये सब विचार होते रहे फिर सब संतों को गरीबदासजी ने कहा - परमात्मा भक्तवत्सल हैं । अतः हम लोगों को गुरुदेव दादूजी महाराज के उपदेशानुसार सदा निरंजन राम की भक्ति करते ही रहना चाहिये । उसमें अन्तराय नहीं पड़ना चाहिये । भक्ति ही प्रभु को प्यारी है । 
(क्रमशः)

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