शुक्रवार, 12 मई 2017

= विन्दु (२)१०० =

#daduji

॥ दादूराम सत्यराम ॥
*श्री दादू चरितामृत(भाग-२)* 
लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*= विन्दु १०० =*
रज्जबजी ने कहा - आपका कहना तो यथार्थ ही है, अब हमारा समाज बन गया है और समाज बनने पर उसके संचालन की रूप रेखा भी अवश्य होनी ही चाहिये । दादूजी महाराज ने वाणी का आश्रय लेकर रहने की आज्ञा तो दी थी ही और वाणी से सब कुछ होता रहेगा, यह भी बता ही दिया था । अतः हमें वाणी को ही इष्ट रूप मानकर आगे चलना चाहिये । दादूजी महाराज के विराजने के लिये देवनिर्मित पालकी आई थी और दादूजी उसमें विराजे थे । दादूजी का अंतिम आसन पालकी था और वाणी दादूजी का स्वरूप है । अतः दादूवाणी जहां रखी जायगी उस स्थान को हमें पालका जी ही नाम देना चाहिये । वाणीजी के स्थान को पालकाजी बोलें और दादूजी ने जिस स्थान में पालकी का त्याग किया था उस भैराणा को भी दादू पालका नाम से ही बोलना चाहिये और अपने स्थानों का नाम दादूद्वारा रखना चाहिये । 
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जगन्नाथजी ने कहा - हमें वाणीजी की प्रतिलिपियां अधिक से अधिक करनी चाहिये । जिससे सब संतों के स्थानों में और गृहस्थ भक्तों के घरों में एक कमरे में एक ताक में वाणीजी सत्कार पूर्वक रखी जाय और उसको पालकाजी नाम से बोला जाय । जो सज्जन नूतन मकान बनायें वे अपने मुख्य कमरे की सामने की दीवाल में मन्दिर के आकार अर्थात् छतरी जैसी पालकी आई थी वैसा ही मंदिर (पालकाजी) बना लेना चाहिये । उसमें वाणीजी को रखना चाहिये । वाणी दादूजी की ही मूर्ति है, ऐसा दृढ़ विश्वास हृदय में रखते हुये प्रतिदिन वाणी की धूप, दीप, पुष्प आदि से पूजा करनी चाहिये प्रतिदिन पाठ करना चाहिये ।
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सांयकाल वाणीजी के आगे एक आरती दादूजी महाराज की रचित और एक किसी उच्चकोटि के संत की, दो आरती गाना चाहिए । शिक्षित हों उनको प्रतिदिन वाणी का प्रवचन करना चाहिये प्रातः काल और सांयकाल पालकाजी को साष्टांग दंडवत करना चाहिये । वाणी के उपदेशों को अपने हृदय में धारण करते हुए अपने जीवन में ढालना चाहिये । गृहस्थ अपने पुत्र पुत्रियों को तथा विरक्त अपने शिष्यों को उक्त व्यवहार भली प्रकार सिखाते रहें । इसमें प्रमाद नहीं करना चाहिये । प्रतिदिन वाणी का पाठ करने से हृदय में वाणी के विचार अवश्य उठते रहेंगे और वे अवश्य ही प्राणी को सब अनर्थों से बचाते रहेंगे । वाणी का पाठ लोक दिखावे के रूप में ही नहीं करना चाहिये । अपने कल्याण के लिये ही करना चाहिये । तब ही पाठक साधन मार्ग में आगे बढ़ेगा । 
(क्रमशः)

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