शनिवार, 6 मई 2017

= मन का अंग =(१०/१०९-११)

#daduji
卐 सत्यराम सा 卐 
*श्री दादू अनुभव वाणी* टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
*मन का अँग १०* 
देखा देखी सब चले, पार न पहुंच्या जाइ ।
दादू आसन पहल के, फिर फिर बैठे आइ ॥१०९॥
सँसार से पार जाने के साधन सँतों की देखा - देखी करते तो सब हैं किन्तु देखा - देखी करने वालों में सँसार के पार जाकर कोई भी ब्रह्म - स्वरूप को प्राप्त नहीं हुआ । वे लोग तो, पहले जो उनका अज्ञान काल में विषयाशा रूप आसन था, उसी पर लौट - लौट कर आ बैठते हैं - उनकी वृत्ति सूक्ष्म विषय - वासना के बल से विषयों पर ही आ जाती है और वे साधन का उपयोग भी विषय प्राप्ति में ही करते हैं ।
*जग जन विपरीत*
वर्तन एकै भाँति सब, दादू सँत असँत ।
भिन्न भाव अन्तर घणा, मनसा तहं गच्छँत ॥११०॥
११० में सँत असँत का भेद बता रहे हैं - क्या सँत और क्या असँत सभी का बाह्य साधन रूप व्यवहार तो समान ही होता है किन्तु भीतर के भाव की भिन्नता से सँत और असँतों में महान् अन्तर है । जिसकी जैसी कामना होती है, वे वहीं जाते हैं । सँत ब्रह्म को और असँत जन्मादि सँसार को प्राप्त होते हैं ।
*मन शक्ति*
यहु मन मारै मोमिनां, यहु मन मारै मीर ।
यहु मन मारै साधकां, यहु मन मारै पीर ॥१११॥
१११ - ११३ में मन की शक्ति का परिचय दे रहे हैं - यह मन धर्मनिष्ठ मोमिन, धर्माचार्य, मीर, साधन - रत साधक और सिद्धावस्था को प्राप्त पीरों को भी विषयों में जाना रूप मार मारता है=इन सबका मन विषयों में दौड़ता है । 
(क्रमशः)

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