शनिवार, 6 मई 2017

= विन्दु (२)१०० =

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॥ दादूराम सत्यराम ॥
*श्री दादू चरितामृत(भाग-२)* 
लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*= अथ विन्दु १०० =*
*= महोत्सव वर्णन =* 
गरीबदासजी ने दादूजी महाराज के महोत्सव की ऐसी व्यवस्था की थी कि उसका वर्णन भी कोई किसी प्रकार नहीं कर सकता । स्वामी दादूजी महाराज ने अपने पीछे गरीबदास अच्छी प्रकार व्यवस्था कर सकेगा ऐसा ही विचार किया था, सो गरीबदासजी ने दादूजी महाराज के विचारानुसार ही संपूर्ण व्यवस्था रखी थी । अपना कार्य करने में गरीबदासजी ने बहुत शौर्य दिखाया था । दादूजी महाराज के महोत्सव के निमंत्रण पत्र सब ओर सब संतों और भक्तों को बड़ी सावधानी से दिये थे । 
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संत और सत्संगियों में अपना कार्य करने का शौर्य होता ही है और उनकी शोभा भी शौर्य पूर्वक कार्य करने से ही होती है । वे मोह को नष्ट करके ही कार्य करते हैं, तब ही उनके कार्य सुन्दर होते हैं । जैसे बांस के पेड़ से बांस निकलता है, चन्दन के वृक्ष की सुगन्ध से अन्य वृक्ष चन्दन हो जाते हैं, सिंहनी से सिंह उत्पन्न होते हैं, वैसे ही साधक भी सिद्धों का ही अनुकरण करते हैं अतः गरीबदासजी ने भी दादूजी महाराज का ही अनुकरण किया था । गरीबदासजी ने महान् संतों के नाम निमंत्रण भेजे थे, उन महान् संतों के साथ - साथ सब दिशाओं से संत जन ऐसे आने लगे थे, जैसे वर्षा ऋतु में बादल आ जाते हैं । 
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संतों में सन्यासी, नाथ, चारों संप्रदायों के वैरागी, उदासी आदि सभी प्रकार के संत आये थे । उनके लिये ‘दादूधाम’ के आस पास पहले से ही स्थान सुरक्षित रखे गये थे, वे उन स्थानों में ठहराये गये थे । अन्य जो आते थे वैसे ही उनके लिये तम्बू तान दिये जाते थे । किसी भी संत तथा गृहस्थ भक्त को किसी भी प्रकार का कष्ट नहीं होना चाहिये, इसका पूरा - पूरा ध्यान रखा जाता था । टौंक महोत्सव में जो संत आये थे उन सबकी तो दादूजी महाराज पर अत्यधिक श्रद्धा थी इसलिये वे सब तो आये ही थे और उन्होंने अन्य बहुतों को प्रेरणा की थी, दादूजी का भंडारा देखने योग्य ही होगा, वहां बहुत बड़े - बड़े संत पधारेंगे अतः इससे संत समुदाय बहुत जुट गया था । ग्राम, बाग, तालाब तट, बाहर भीतर जहां भी देखो वहां संतों की ही भीड़ लगी रहती थी । 
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वह दादूजी महोत्सव तो कुंभ मेला ही प्रतीत होता था । इसी प्रकार भक्तों की भारी भीड़ रहती थी किन्तु भक्त लोग तो आते जाते रहते थे और संतों को तो सबको प्रार्थना की गई थी कि एक मास तो आप लोग यहां ही विराजने की कृपा अवश्य करना फिर तो आप लोगों की इच्छा हो तो रहना । अतः संत लोग तो एक मास के लिए प्रार्थना मानकर वहां स्थित रहे थे । गरीबदासजी महाराज ने दादूजी महाराज के महोत्सव के लिये पहले ही सब सामग्री बहुत मात्रा में संग्रह करली थी । व्यवस्था के लिये पहले ही भिन्न - भिन्न सेवाओं के लिये व्यक्ति नियुक्त कर दिये गये थे । जल भरने वाले प्रातः ही सबके यहां जल के कोरे कलश जिनको जितने चाहिये थे उतने ही रख आते थे । सफाई करने वाले सबके यहां बुहारी निकाल आते थे । अनेक भक्त संत सेवा के लिये ही आये हुये थे । वे संतों को स्नान कराना, संतों के वस्त्र धोना आदि सेवा में सप्रेम लगे रहते थे । घूणी वाले संतों को प्रतिदिन लक्कड़ पहुँचा दिये जाते थे । 
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प्रातः ही दोनों समय के लिये सबके ठंडाई के लिये बादाम आदि सामग्री, तथा शक्कर पहुंचा दी जाती थी । जो ठंडाई नहीं पीते थे उनके लिये गर्म दूध पहुँचा दिया जाता था । स्वयं - पाकियों को इच्छा के अनुसार सामग्री पहुँचा दी जाती थी । गरीबदासजी महाराज सेवकों से पूछते थे, संतो की सेवा का कार्य सब हो गया है या नहीं, तब सेवक गण कहते थे, आपकी आज्ञानुसार सब कार्य हो गया है । फिर गरीबदासजी अपने गुरु भाई संतों को सब संतों के पास भेजते थे कि आप लोग सबसे पूछके आओ, किसी वस्तु की किसी संत को आवश्यकता हो तो उनके पास वह वस्तु पहुँचाओ । हमारे आये हुये अतिथि संतों को कोई भी कष्ट नहीं होना चाहिये । 
(क्रमशः)

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