मंगलवार, 23 मई 2017

= पच्ञप्रभाव(ग्रन्थ ९/२९-३०) =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
https://www.facebook.com/DADUVANI
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*= पच्ञप्रभाव(ग्रन्थ ९) =*
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*देह प्राण कौ धर्म यह, शीत उष्ण क्षुत् प्यास ।*
*ज्ञानी सदा अलिप्त है, ज्यौं अलिप्त आकास ॥२९॥*
सर्दी-गर्मी, भूख-प्यास देह के धर्म है । अर्थात् स्थूल शरीर इन से सुख-दुःख अनुभव करता है । ब्रह्मप्राप्त ज्ञानी तो इन सब धर्मों से उसी तरह निर्लिप्त रहता है जैसे आकाश ॥२९॥
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*= ज्ञानी की श्रेष्ठता का वर्णन =*
*भक्ति१ भक्त माया जगत, ज्ञानी सब कौं सीस ।*
*पंच प्रभाव वखानिया, सुन्दर दोहा तीस ॥३०॥*
॥ समाप्तोऽयं पंच प्रभाव ग्रन्थ ॥
(१. भक्ति भक्त ''''इत्यादि कहने से यही प्रयोजन है कि भक्ति और भक्ति, करनेवालों तथा माया के विकारों, और संसार के सभी पदार्थों से ज्ञानी ऊँचा है, और शरीर में सिर है । अथवा जैसे शरीर में सिर उत्तमांग कहा गया वैसे ही ज्ञानी और उसका ज्ञान सर्वश्रेष्ठ है । पंचप्रभाव--१ उत्तम, २ मध्यम, ३ अधम, ४ अध(नीचातिनीच) और पांचवां ज्ञानी तुरीयातीत पांच प्रभाव या पांच प्रकार कहे गये । मनुष्य पर भक्ति, माया और ज्ञान के जैसे प्रभाव वा असर पड़ते हैं तदनुसार ये पाँच कहे गये ।) -
महाराज श्री सुन्दरदासजी कहते हैं कि मैने तीस दोहों में मनुष्य पर १. भक्ति, २. भक्त. ३. माया, ४. जगत्, ५. सर्वोत्तम ज्ञानी-इन पाँचों का जैसा अच्छा-बुरा प्रभाव पड़ता है, वैसा वर्णन कर दिया ॥३०॥
॥ यह पंचप्रभाव ग्रन्थ समाप्त ॥
(क्रमशः)

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