रविवार, 7 मई 2017

= मन का अंग =(१०/११२-४)


#daduji 
卐 सत्यराम सा 卐 
*श्री दादू अनुभव वाणी* टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
*मन का अँग १०* 
दादू मन मारे मुनिवर मुये, सुर नर किये सँहार ।
ब्रह्मा विष्णु महेश सब, राखै सिरजनहार ॥११२॥
मन के द्वारा मुनिवर भी विषय प्रवृत्ति रूप मृत्यु को प्राप्त हुये हैं । देवता और मानवों का भी मन अपनी इच्छा पूर्ति के लिए सँहार करता रहता है । अन्यों की तो बात ही क्या ! ब्रह्मा, विष्णु और महेश्वरादि सभी मन के कारण विक्षिप्त हुये हैं । मुनिवरादि की कथाएं पुराणों में प्रसिद्ध हैं । इस चँचल मन की मार से तो भक्ति द्वारा भगवान् ही रक्षा करते हैं, अन्यथा यह सबको मारता है ।
मन बाहे मुनिवर बड़े, ब्रह्मा विष्णु महेश ।
सिध साधक योगी यती, दादू देश विदेश ॥११३॥
इस मन ने मुनिवरों में बड़े - बड़े मुनियों को भी विषय - प्रसंग द्वारा बहका कर डिगाया है । ब्रह्मा, विष्णु और महेश्वर को भी क्षुब्ध किया है । सिद्ध, साधक, योगी और यतियों को भी साधन द्वारा प्राप्त अपनी स्थिति रूप देश से डिगाकर विषय रूप विदेश में स्थित किया है ।
*मन मुखी मान*
पूजा मान बड़ाइयाँ, आदर माँगै मन ।
राम गहै सब परिहरै, सोई साधू जन ॥११४॥
११४ - ११५ में स्वेच्छाचारी मनुष्य का परिचय दे रहे हैं - मन की इच्छानुसार चलने वाले सँसारी प्राणी का मन अपनी अर्चना, प्रतिष्ठा, प्रशँसा और सत्कार चाहता है किन्तु श्रेष्ठ जन तो वही है जो पूजादि, सबकी इच्छा त्याग कर निरँतर भजन द्वारा राम को ही ग्रहण करता है । 
(क्रमशः)

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