रविवार, 7 मई 2017

= विन्दु (२)१०० =

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॥ दादूराम सत्यराम ॥
*श्री दादू चरितामृत(भाग-२)* 
लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*= विन्दु १०० =*
जिनको भेजते थे वे संत ये हैं - क्षेमदासजी, दयालदासजी, पीपाजी, बनमालीजी, विष्णुदासजी, सांगाजी, जैसाजी, पहराजजी, बोहितजी, मसकीनदासजी, प्रयागजी, दामोदरजी, लघु बनवारीजी, इत्यादि संत संतों के आसनों पर जा जाकर संतों को प्रतिदिन पूछते थे । कृपया कोई वस्तु की आवश्यकता हो तो कहिये वह सेवा में अभी उपस्थित करदी जायगी । आपकी आज्ञा करने की ही देर है वस्तु तत्काल आपकी आ जायगी । आपकी कृपा से यहां आवश्यक सभी वस्तुयें तैयार रहती है । 
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उक्त संतों की प्रार्थना सुनकर आये हुये संत कहते थे - यह तो बिना कहे ही आपके सेवक लोग सब काम सुचारू रूप से कर जाते हैं । यहां संत सेवा का कार्य बहुत अच्छा चल रहा है । देखिये हमारे शीतल जल के कलश हर समय भरे ही रहते हैं । प्रातःकाल ही दोनों समय के लिए ठंडाई का समान बादाम आदि शक्कर आ जाती है । जो ठंडाई नहीं पीते उनके लिये गर्म दूध आ जाता है । स्वयं - पाकियों के लिए ठीक समय पर उनकी इच्छानुसार सीधा पूछ - पूछकर दे जाते हैं । वे बनाकर ठाकुरजी के भोग लगाकर प्रसाद पाते हैं । फिर अपने भजन में लगे रहते हैं । बना बनाया पाने वाले सत्यराम की आवाज, रणसिंहा और नोबत बजते ही पंक्ति में पधार जाते हैं । और इच्छानुसार नाना पदार्थ जीम आते हैं, और दिन भर आपके हजारों सेवक दर्शन करने आते हैं तब नाना फल और सूखे मेवे संतों को भेंट कर जाते हैं । हमने यहां किसी भी संत से यह नहीं सुना है कि मेरे को यह असुविधा है । यहां तो किसी का शरीर ठीक नहीं होता है तो प्रातः कई वैद्य भी आकर सबको संभाल जाते हैं और जिसको आवश्यकता हो दवा भी दे जाते हैं । 
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फिर एक वृद्ध संतजी ने कहा - हमारी ८० वर्ष की आयु हो गई है. हमने किसी भी संत के महोत्सव में संत सेवा का ऐसा सुन्दर प्रबन्ध नहीं देखा है । आप लोगों को इस सेवा के लिए तो अनेकों धन्यवाद है । उक्त संत क्षेमदासजी आदि प्रतिदिन उक्त प्रकार सब संतों के आसनों पर जाकर सब संतों से सेवा के लिए प्रार्थना करते थे और किसी संत को कोई आवश्यकता होती तो उस को तत्काल पूरी कर देते थे । दोनों समय भोजन करने वाले संतों की विशाल पंक्ति लगती थी । उस में संत लोग बड़े प्रेम से श्लोक बोलते थे, बड़ा आनन्द आता था । भोजन दोनों समय सबको दिया जाता था । जो संत एक समय भोजन करते थे उनको सांयकाल उनकी इच्छानुसार दूध दिया जाता था । जिन वैष्णव संतों के साथ ठाकुर सेवा थी उनको ठाकुरजी के भोग लगाने के लिए प्रातःकाल उनकी इच्छानुसार बाल भोग और सांयकाल दूध दिया जाता था । 
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दूध देने का कार्य नारायणा नरेश नारायण - सिंहजी ने अपने अधिकार में रक्खा था । उनके सेवक ग्रामों से दूध संग्रह करके लाते थे और कुछ प्रेमी लोग आस - पास के ग्रामों से स्वयं ही लेकर आते थे और दूध के कड़ाहों में डाल जाते थे । नारायणसिंहजी के सेवक दूध को गर्म करके बड़ी सावधानी से बाँटते थे । बाँटने के पश्चात् नारायणसिंहजी के कार्यकर्ता सब संतों को पूछ लेते थे कि किसी संत को जो सांयकाल भोजन नहीं करते दूध नहीं मिला हो तो कहिये, दूध मंगवा दिया जायगा किन्तु बाँटने वाले ऐसा होने ही नहीं देते थे । 
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नारायणसिंह और उनके सभी भाई स्वयं संतों के आसनों पर जाकर सब व्यवस्था देखते थे । कहीं भूल हो भी जाती तो उसको सुधार देते थे । इस प्रकार दोनों समय ठंडाई के समय ठंडाई, दूध के समय दूध, भोजन के समय भोजन का पूरा पूरा ध्यान नारायणसिंहजी स्वयं रखते थे । इस महोत्सव में नारायणसिंहजी ने तथा उनके बड़े भाई भाकरसिंह जी आदि सभी भाइयों ने पूर्ण रूप से संतों की सेवा की थी । 
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उधर गरीबदासजी भी अति उदार संत थे । भंडारे के लिये राजा महाराजा सेठ साहूकारों ने बहुत धन राशि भेजी थी । उस संपत्ति से - चावल, दाल, कनक, घृत, मैदा, शक्कर आदि खाने की वस्तुओं की राशियां लगा दी थीं । ना तो किसी को भी नहिं करते थे । जो सीधा सामान माँगता था उसको सीधा और जो जीमना चाहते थे उनको जिमाने का कार्य हर समय चलता ही रहता था । 
(क्रमशः)

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