रविवार, 28 मई 2017

= माया का अंग =(१२/२५-७)

#daduji

卐 सत्यराम सा 卐 
*श्री दादू अनुभव वाणी* 
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
*माया का अँग १२*
माया के संग जे गये, ते बहुरि न आये । 
दादू माया डाकिनी, इन केते खाये ॥ २५ ॥ 
जो भी मायिक विषयों में आसक्त होकर व्यवहार में प्रवृत्त हुये हैं वे पुन: सत्संगादिक कल्याण मार्ग में नहीं आ सके हैं । यह माया डाकिनी के समान है, इसने कितने ही साधकों को कल्याण मार्ग से भ्रष्ट किया है । 
दादू माया मोट विकार की, कोइ न सकई डार । 
बह बह मूये बापुरे, गये बहुत पचहार ॥ २६ ॥ 
यह माया विकारों की गठरी है । तुच्छ प्राणी तो इसके बोझ को ढो - ढो कर मर गये हैं । बहुत - से अज्ञानी लोग इसको पटकने के लिए प्रयत्न करके हार गये हैं किन्तु इसे अपने शिर से नीचे कोई भी नहीं डाल सका । 
दादू रूप राग गुण अणसरे१, जहं माया तहं जाइ । 
विद्या अक्षर पँडिता, तहां रहे घर छाइ ॥ २७ ॥ 
जिनको सत्संग प्राप्त नहीं होता, वे जहां रूप - रागादि मायिक गुण होते हैं वहां ही जाते हैं । माया के बिना उनका काम नहीं चलता१ । नाना प्रकार की कला जानने वाले, अक्षर, विज्ञान तथा शब्दार्थों के जानने में निपुण पँडित तो जहां माया होती है, वहां ही घर बनाकर बस जाते हैं ।
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें