गुरुवार, 11 मई 2017

= पच्ञप्रभाव(ग्रन्थ ९/७-८)

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
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*= पच्ञप्रभाव(ग्रन्थ ९) =*
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*= सन्तों के साथ भक्ति का विवाह =*
*भक्ति बिवाही सन्तजन, माया दासी संग ।*
*जुवती सौं निश दिन रमैं, दासी सौं नहिं रंग ॥७॥*
अन्त में उन सन्तों के साथ परमात्मा ने अपनी पुत्री भक्ति का विवाह कर दिया । साथ में सेवा-टहल कदमी के लिये माया दासी को भी लगा दिया । परन्तु वे सन्तजन युवती भक्ति के साथ ही दिन रात रमण करते थे । माया दासी की तरफ उनकी कोई रुचि नहीं थी ॥७॥
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*= १. उत्तम सन्त वर्णन =*
*जुवती अति प्यारी लगी, तासौं बांधी प्रीति ।*
*दासी कौं आदर नहीं, यह सन्तनि की रीति ॥८॥*
उन्हें तो भक्ति युवती ही अत्यन्त प्रिय थी, अतः उनका उसी से उत्तरोत्तर प्यार बढ़ता गया । उनके व्यवहार में दासी माया को कहीं भी बढ़ावा नहीं मिल पाता था । वह दासी थी, दासी का काम करती रहे, इससे आगे और कुछ नहीं--यही सन्तों की कुलपरम्परा थी ॥८॥
(क्रमशः)

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