गुरुवार, 11 मई 2017

= विन्दु (२)१०० =

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॥ दादूराम सत्यराम ॥
*श्री दादू चरितामृत(भाग-२)* 
लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*= विन्दु १०० =*
*= महोत्सव समाप्ति =*
उक्त प्रकार आषाढ़ शुक्ला पंचमी तक मेले की सीमा थी तब तक अति आनन्द के साथ मेला रहा । कहा भी है - 
“जेठ शुकल पांचैं तैं गनिजे, 
आषाढ़ सुदि पांचैं तक लीजे । 
एक मास मेला भरवाया, 
नित नूतन भोजन सु जिमाया” 
महन्त पुज्य को दिये दुशाला, 
पुष्पन की पहराई माला ॥” 
(चेतन कृ. जन्म लीला .) 

उक्त प्रकार मेला की समाप्ति का दिन आया तब यथा योग्य सत्कार करके विदा किया । स्वामी दादूजी महाराज के शिष्यों ने तथा गृहस्थभक्तों ने बहुत धन दिया था । सो गरीबदासजी ने सब खिला दिया तथा बाँट दिया था किन्तु जिस दिन चादर ओढ़ाई थी उस दिन फिर बहुत आ गया था । कहा भी है - 
“गरीबदास चादर ओढ़ाई । 
सब राजन मिल भेंट चढ़ाई ॥” 
(महन्त चेतनजी कृ.) 

ज्यों कूआ की सीर न सूखे, 
ज्यों काढ़े त्यों भीतर ढूके । 
त्यों धन बाँटे से धन होई, 
मिथ्या रती न मानो कोई ॥” 
आषाढ़ शुक्ला छठ के दिन भोजन करके संत अपनी इच्छानुसार विचर गये । 
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*= समाज के लिये भविष्य विचार =* 
जिन की इच्छा ठहरने की थी वे ठहर गये । दादूजी महाराज का भंडार तो मेले के समान ही फिर भी चलता ही रहा था । फिर दूसरे दिन गरीबदासजी ने अपने सभी गुरु भाई और गुरु भाइयों के शिष्य सेवक आदि अपने समाज के सभी सज्जनों की परिषद् बुलाई । उसमें नारायणा नरेश नारायणसिंह, भाकरसिंह, अमरसिंह, केशोदासजी आदि राजा के जो भाई उस दिन थे उन सब को भी बुलवाया । 
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सभा भर जाने पर गरीबदासजी महाराज ने कहा - “महानुभाव गण ! महाराज दादूजी का महोत्सव आप सब सज्जनों के सहयोग से मेरे विचार में बहुत अच्छा और स्वामीजी महाराज के अनुरूप ही हो गया है । अब भविष्य का भार आप लोगों ने मेरे राम को सौंपा है, सो मैं तो निमित्त मात्र ही हूं किन्तु इस समाज को सुचारू रूप से चलाना तो आप सभी का कार्य है । श्री गुरुदेव दादूजी महाराज ने ५२ शिष्यों को समाज का भार स्वयं ही सौंप दिया था । अतः इस समाज को स्थिर रखने के लिये वे ५२ स्तंभो के समान हैं । जैसे स्तंभो से ही महल स्थिर रहता है, वैसे आप ५२ नों के प्रचार से यह समाज भी स्थिर रहैगा । 
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मैं भी उनमें एक था किन्तु अब आप लोग मेरे को यह पद देकर उदासीन मत हो जाना । यद्यपि यह साधक संतों का समाज है, इसका चलाना भी कठिन नहीं है फिर भी दादूजी महाराज की वाणी का प्रचार करते हुये दादूजी महाराज की साधन पद्धति को व्यापक बनाना हमारा मुख्य कार्य है । अतः हम तथा हमारे शिष्य सेवकों में यह भावना अवश्य पूर्णरूप से रहनी चाहिये कि दादूजी के उपदेशों का प्रचार करके सांसारिक प्राणियों को सन्मार्ग में लगाना ही हमारा मुख्य कर्तव्य है । इस में प्रमाद लेश भी नहीं करना है । हम किसी में भी कोई त्रुटि हो तो परस्पर के विचार से उसको निकालने का उद्योग करके उसे निकालना ही अच्छा होगा । भूल को भूल ही मानना चाहिये । दोष को गुण मानने वालों का श्रेय पथ रुक जाया करता है । यह सब तो आप सभी महानुभाव जानते हैं । मैं आप लोगों को उपदेश ही नहीं कर रहा हूँ स्वयं भी अपने कथन के अनुसार व्यवहार रखने का पूर्ण प्रयत्न करता रहूँगा । अतः आज हमें हमारे समाज के भविष्य का विचार करना आवश्यक है । उसी के लिये आप सबको इस सभा में बुलवाने का कष्ट दिया है । 
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मैंने मेरे विचारों के अनुसार आपको निवेदन कर दिया है । आप महानुभाव तो महान् ज्ञानी, शास्त्रों के विद्वान्, पूर्ण भक्त, योगि और पूर्ण नीतिज्ञ इस सभा में विराजमान् हैं फिर भी मैंने उक्त निवेदन करना मेरा कर्तव्य समझ कर किया है । अब आप लोग सब मिलकर आगे के लिये समाज एक सूत्र में स्थित रहकर सब कार्य करता रहै ऐसी रूप - रेखा बनाकर सबके सामने रखने की कृपा करें । जिसका आश्रय लेकर हम आगे चलते रहें । यद्यपि दादूजी महाराज ने आज्ञा दी थी कि वाणी का आश्रय लेकर रहना, इससे सब काम तुम्हारे सुचारु रूप से चलते रहेंगे । उसका भी विचार रखते हुये ही आप लोगों को सामाजिक विधान बनाना चाहिये । इतना कहकर गरीबदासजी मौन हो गये । 
(क्रमशः)

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