शनिवार, 20 मई 2017

= माया का अंग =(१२/१-३)

#daduji

卐 सत्यराम सा 卐 
*श्री दादू अनुभव वाणी* 
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
*अथ माया का अँग १२*
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सूक्ष्म जन्म के अँग के पश्चात् सूक्ष्म जन्मों के कारण "माया का अँग" कथन में प्रवृत्त मँगल कर रहे हैं । 
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दादू नमो नमो निरंजनँ, नमस्कार गुरुदेवत: । 
वन्दनँ सर्व साधवा, प्रणामँ पारँगत: ॥ १ ॥ 
जिनकी कृपा से साधक माया से पार होकर परब्रह्म को प्राप्त होता है, उन निरंजन राम, सद्गुरु और सर्व सन्तों को हम अनेक प्रणाम करते हैं । 
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साहिब है पर हम नहीं, सब जग आये जाइ । 
दादू स्वप्ना देखिये, जागत गया बिलाइ ॥ २ ॥ 
२ में मायिक सँसार की असत्यता बता रहे हैं - परब्रह्म सत्य है किन्तु हम शरीर रूप से सत्य नहीं हैं । सभी जगत् के शरीरादि पदार्थ आते जाते हैं, उत्पन्न होते हैं और नष्ट होते हैं । फिर भी जैसे स्वप्न स्वल्पकाल में सत्य - सा भासता है वैसे ही जाग्रत के शरीरादि सत्य से दीखते हैं । परन्तु जागते ही स्वप्न लय हो जाता है, वैसे ही ब्रह्मज्ञान होते ही शरीरादि की सत्यता नष्ट हो जाती है । 
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माया का सुख पँच दिन, गर्व्यो कहा गँवार । 
स्वप्ने पायो राज धन, जात न लागे बार ॥ ३ ॥
३ - ८ में मायिक सुख की असत्यता दिखा रहे हैं - अज्ञानी प्राणी ! यह मायिक सुख स्वप्न - सुख के समान क्षणिक है । इस पर क्या गर्व करता है ? जैसे स्वप्न में किसी ने राज्य और महान् धन प्राप्त कर लिया किन्तु उसे जगते ही नष्ट होते क्या देर लगती है, वैसे ही तेरे मायिक सुख को भी नष्ट होते देर न लगेगी ।
(क्रमशः)

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