#daduji
॥ दादूराम सत्यराम ॥
*श्री दादू चरितामृत(भाग-२)*
लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
.
*= विन्दु १०० =*
.
फाल्गुण शुक्ला अष्टमी को ही नारायणा धाम के मेले का मुख्य दिन माना गया । उसी दिन दादूजी लोधीराम नागर को मिले थे । ज्येष्ठ कृष्णा अष्टमी निर्वाण दिन होने पर भी ग्रीष्म ऋतु के कारण मुख्य मेला उस दिन नहीं रखा गया था । मेला लगने का संत गुण सागर के २३ वे तरंग में भी कहा है ।
तोटक छंद -
तोटक छंद -
द्विज ले अवतार हि पाय तदा,
यह अष्टमि फागुण मास सदा ।
रचि संत समागम ताहि दिना,
सुख पावत हैं जन संत घना ॥
अर्थात् - जिस दिन ब्राह्मण लोधीराम नागर को श्री दादू अवतार की प्राप्ति हुई थी, उसी फाल्गुण शुक्ला अष्टमी का वार्षिक मुख्य मेला करना निश्चय किया गया । कारण, फाल्गुण वसंत ऋतु में होने से मेले में आने वाले सज्जनों को आतप जन्य क्लेश नहीं होगा । ज्येष्ठ कृष्णा अष्टमी ग्रीष्म ऋतु में होने से आतप जन्य क्लेश अत्यधिक होगा ही । उक्त कारण से वार्षिक मुख्य मेला आविर्भाव दिन का ही रक्खा गया था ।
.
वैसे तो संतों की निर्वाण तिथियां ही विशेष रूप से मनाई जाती है । उस समय वे संतत्व को प्राप्त होते हैं । जन्मदिन पर प्रायः संतत्व सबको प्राप्त नहीं होता है । केवल दादूजी महाराज के समान अवतारी संतों को ही जन्म समय संतत्व प्राप्त होता है । उक्त विचार करके ज्येष्ठ कृष्णा अष्टमी का भी उत्सव मनाना निश्चय किया गया सो अद्यापि सब स्थानों में मनाया ही जाता है । इत्यादिक बहुत से विचार भविष्य संबन्धी किये गये फिर अन्त में निश्चय किया गया कि वाणी की प्रतिष्ठा और पूजा आज से ही आरंभ करदी जाय ।
(क्रमशः)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें