रविवार, 14 मई 2017

= पच्ञप्रभाव(ग्रन्थ ९/१३-४)

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
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*= पच्ञप्रभाव(ग्रन्थ ९) =*
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*दासी कर जीमैं नहीं, बरतें नाना भाइ ।*
*जाति माँहि नहिं काढिये, सब मिलि बैठे आइ ॥१३॥*
यद्यपि वे दासी के हाथ का बनाया भोजन न कर भक्ति युवती का बनाया ही करते हैं, पर अन्य अवशिष्ट लोकव्यवहार में उस माया को भी महत्त्व देते हैं । अन्तरंग गोष्ठियों में भी उसे वहीं बिठाये रखते हैं जहाँ सब सन्त आकर बैठते हैं । उससे कोई दुराव नहीं करते ॥१३॥
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*जुवती सौं रस रंग अति, दासी सौं नहिं प्यार ।*
*सुन्दर सो मध्यस्थ है, जाकौ यह व्यवहार ॥१४॥*
ऐसे सन्त जो भक्ति युवती से रसरंग का अतिरेक रखते हुए भी माया दासी को भी सभी बातों में बढ़ावा देते रहते हैं(भले ही वे उससे रमण न करें) मध्यस्थ कहलाते हैं, जिनका उपर्युक्त व्यवहार है ॥१४॥
(क्रमशः)

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