मंगलवार, 23 मई 2017

= माया का अंग =(१२/१०-२)

#daduji

卐 सत्यराम सा 卐 

*श्री दादू अनुभव वाणी* 
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
*माया का अँग १२*
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*माया* 
स्वप्ने सब कुछ देखिये, जागे तो कुछ नाँहिँ । 
ऐसा यहु सँसार है, समझ देख मन माँहिं ॥ १० ॥ 
१० - १६ में मायिक प्रपँच को मिथ्या बताते हुए ब्रह्म में वृत्ति लगाने की प्रेरणा कर रहे हैं - जैसे स्वप्न में सब कुछ सत्य भासते हैं किन्तु जागने पर लेशमात्र भी सत्य नहीं ज्ञात होते, ऐसा ही यह जाग्रत का सँसार है । तू सँतों द्वारा बताये ब्रह्मज्ञान को मन में समझकर देख, फिर तो तुझे भी मिथ्या ही भासेगा । 
दादू ज्यों कुछ स्वप्ने देखिये, तैसा यहु सँसार । 
ऐसा आपा जानिये, फूल्यो कहा गंवार ॥ ११ ॥ 
जैसे स्वप्न में बिना हुये पदार्थ देखे जाते हैं वैसा ही यह सँसार है और ऐसा ही इन मायिक पदार्थों में प्राणी का अपनेपन का अभिमान भी मिथ्या ही है । ये देखते - देखते दूसरों के हो जाते हैं । अत: अज्ञानी ! इनको देखकर क्यों भूल रहा है । ब्रह्म में वृत्ति लगा । 
दादू जतन जतन कर राखिये, दृढ़ गह आत्मा मूल। 
दूजा दृष्टि न देखिये, सब ही सेमल फूल ॥ १२ ॥ 
अपने मूल ब्रह्म के स्वरूप चिन्तन को विवेक - वैराग्यादि प्रयत्नों द्वारा दृढ़ता से हृदय में रखना चाहिए । ब्रह्म भिन्न मायिक प्रपँच को सत्य दृष्टि से नहीं देखना चाहिए । यह सब सेमल वृक्ष के फूल समान बहकाने वाला है । सेमल के फूल की डोडी को फल समझकर शुक पक्षी, खिल जाने पर माँस राशि समझकर गिद्ध गण, और सिन्दूर गिरि समझकर अप्सरागण बहकते है ।
(क्रमशः)

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