सोमवार, 22 मई 2017

= पच्ञप्रभाव(ग्रन्थ ९/२७-८) =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
https://www.facebook.com/DADUVANI
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*= पच्ञप्रभाव(ग्रन्थ ९) =*
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*= तुरीयातीत शब्द की निरुत्ति =*
*जो कोउ पूछै फेरी करि, कैसैं तुरीयातीत ।*
*क्षुधा तृसा ब्यापै सदा, लगै धाम अरु सीत ॥२७॥*
(महाराज कहते हैं-) यदि कोई हमसे यह पूछे कि ज्ञानी को तुरीयातीता वस्था कैसे प्राप्त होगा; क्योंकि उसे भी साधारण मानव की तरह हमेशा भूख-प्यास, सर्दी-गर्मी तो लगती ही है ॥२७॥
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*याकौ उत्तर अब कहौं, सुनि लीजै मन लाइ ।*
*सीत उष्ण वाकौं नहीं, ना वहु पीवै न खाइ ॥२८॥*
इसका उत्तर भी हम देते हैं, उसे ध्यान से सुन लो । उस ज्ञानी को सर्दी-गर्मी नहीं सताती, न वह खाता-पीता है ॥२८॥
(क्रमशः)

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