सोमवार, 22 मई 2017

= माया का अंग =(१२/७-९)

#daduji

卐 सत्यराम सा 卐 
*श्री दादू अनुभव वाणी* 
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
*माया का अँग १२*
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यहु सब माया मृग जल, झूठा झिलमिल होइ । 
दादू चिलका देख कर, सत कर जाना सोइ ॥ ७ ॥ 
ये सब मायिक भोग मृग - तृष्णा - जल के झिलमिलाहट के समान मिथ्या हैं किन्तु जैसे मृग उस जल के चिलके को देखकर उसके लिए दौड़ - दौड़ कर व्यथित होते हैं, वैसे ही अज्ञानी प्राणी मायिक भोगों के क्षणिक सुख रूप चमत्कार को सत्य जानकर उनके लिए नाना क्लेश उठाते हैं । 
झूठा झिलमिल मृग जल, पाणी कर लीया । 
दादू जग प्यासा मरे, पशु प्राणी पीया ॥ ८ ॥ 
मृग - तृष्णा के मिथ्या जल के झिलमिलाहट को मृग - गण सत्य मान लेते हैं, तभी वे उसके लिए दौड़ - दौड़ कर दुखी होते हैं । वैसे ही सँसार के पशुवत् पामर प्राणी मायिक भोगों के क्षणिक सुख को सत्य मानकर, उसमें आसक्त होते हैं किन्तु अभी तक तृप्त नहीं हुये, भोगाशा से बारँबार जन्म - मरण रूप क्लेश ही पा रहे हैं । 
*पति पहचान*
छलावा छल जायगा, स्वप्ना बाजी सोइ । 
दादू देख न भूलिये, यहु निज रूप न होइ ॥ ९ ॥ 
९ में ब्रह्म रूप स्वामी को पहचानने का सँकेत कर रहे हैं - साधको ! जैसे स्वप्न और बाजीगर की इन्द्रजाल - बाजी मिथ्या होती है वैसे ही ध्यान के समय नाना दृश्य और प्रकाश जो दीख - दीख कर छिप जाते हैं वो मायिक सिद्धियाँ हैं ये सब छलने वाले छलावे हैं । सचेत रहना, ये तुम्हें छल कर ब्रह्म - साक्षात्कार से वँचित रख देंगे । इन्हें देखकर परब्रह्म को मत भूलो । वह छलावा आदि मायिक प्रपँच परब्रह्म नहीं हो सकते, परब्रह्म तो इनका अधिष्ठान है ।
(क्रमशः)

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