रविवार, 17 सितंबर 2017

= गुरुकृपा-अष्टक(ग्रन्थ १६/४-दो.,३-त्रि.) =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान,
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
https://www.facebook.com/DADUVANI
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*= गुरुकृपा-अष्टक(ग्रन्थ १६) =*
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*= दोहा =*
*दुन्द रहित निर्मल दशा, सुख दुख एक समान ।*
*भेदाभेद न देखिये, सद्गुरु चतुर सयान ॥४॥*
जो निर्द्वन्द्व है, निर्मलचित्त(वासनारहित) है; सुख-दुःख, लाभ-अलाभ, जय-पराजय, भूख-प्यास, सर्दी-गर्मी आदि लगने पर अपनी समस्थिति रखता है; जिसके लिये भेद-अभेद कोई महत्त्व नहीं रखते, ऐसा चतुर(ज्ञानोपदेश में प्रवीण) ज्ञानी पुरुष ही सद्गुरु बनने योग्य है ॥४॥
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*= त्रिभंगी =*
*तौ चतुर सयानं भेद न आनं,*
*अबिचल थानं जिनि जानं ।*
*अरु सब भ्रम भानं नाहीं छानं,*
*निर्बानं मन मानं ॥*
*जौ रहै निदानं सो पहिचानं,*
*पूरण ज्ञानं मम आशी ।*
*दादू गुरु आया शब्द सुनाया,*
*ब्रह्म बताया अबिनाशी ॥३॥*
ऐसा प्रवीण ज्ञानी पुरुष, जिसमें किसी प्रकार का भेदाभेद नहीं रह गया है,जिसने अविनाशी पद(ब्रह्मज्ञान) प्राप्त कर लिया है, जिसके सभी प्रकार के भ्रम नष्ट हो चुके हैं,
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जिसका ज्ञान परिपूर्ण हो चुका है, जो निर्वाण- पद (मुक्ति) प्राप्त कर चुका है, जिसने संसार का अदिकारण(अविद्या) जान लिया है, उसे सद्गुरु समझना चाहिये ।
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उसी के द्वारा हमें भी पूर्ण ज्ञान प्राप्त हो पायगा । ऐसे ही सद्गुरु श्रीदादूदयालजी महाराज कृपा करके मेरे पास आये,
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मुझको राममन्त्र का उपदेश दिया, और मुझे अविनाशी ब्रह्मतत्व का साक्षात्कार करा दिया ॥३॥
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(क्रमशः)

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