सोमवार, 25 दिसंबर 2017

= सुमिरण का अंग २०(१-४) =

#daduji

卐 सत्यराम सा 卐 
*दादू नीका नांव है, तीन लोक तत सार ।* 
*रात दिवस रटबो करो, रे मन इहै विचार ॥* 
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**श्री रज्जबवाणी** 
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥ 
साभार विद्युत् संस्करण ~ Mahant Ramgopal Das Tapasvi 
*सुमिरण का अंग २०*
इस अंग में स्मरण संबंधी विचार दिखा रहे हैं - 
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राम नाम मूल मंत्र, सत्य नाम निरंजनं । 
यथा ध्यावै तथा पावै, भजे भरिये भाजनं ॥१॥ 
राम नाम ही मूल मंत्र है, सत्य नाम ही निरंजन ब्रह्म है, जो जैसी उपासना करता है, वैसा ही फल पाता है । भजन करने से अवश्य ही अन्त:करण रूप पात्र आनन्द से भर जाता है । 
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रज्जब रटि जटि नामसौं, आठों पहर अखण्ड । 
सुमिरण सम सौदा नहीं, निरख देख नौ खंड ॥२॥ 
आठों पहर अखंण्ड नाम रटते हुये, जैसे जङिया भूषण में नग को जड़ता है, वैसे ही वृत्ति नाम में जड़ दे । हे साधक ! चाहे तू पृथ्वी के नौओं खंण्ड में दृष्टि फैलाकर देखले, स्मरण के समान श्रेष्ठ साधन रूप व्यापार नहीं मिलेगी । 
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इस माया मंडाण मधि, सुमिरण सम कछु नाँहिं । 
तो आधार उर राखिये, जन रज्जब जिव माँहिं ॥३॥ 
इस माया रचित संसार में कल्याण का साधन हरि स्मरण के समान अन्य कोई भी नहीं है । अत: हे जीव ! उसीको अपने कल्याण का आधार समझकर निरंतर हृदय में रखना चाहिये । 
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बावन अक्षर वारिनिधि, मध्य रत्न रंकार । 
रज्जब लिया विलोय वित, आतम का आधार ॥४॥ 
जैसे समुद्र में रत्न हैं, वैसे ही वर्णमाला के ५२ अक्षरों में "राँ" है ।देव दानवों ने समुद्र का मंथन करके १४ रत्न रूप धन निकाला था, वैसे ही संतों ने वर्णमाला से "राँ" निकाला है, जो कल्याण मार्ग में जीवात्मा का आश्रय है, अर्थात नाम चिन्तन से ही कल्याण होता है ।
(क्रमशः)

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