🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान,
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
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*= ज्ञान-झूलनाष्टक(ग्रन्थ २६) =*
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*नहिं गौस है रे नहिं नैन है रे,*
*नहिं मुख है रे नहिं बैन है रे ।*
*नहिं ऐंन४ है रे नहिं गैंन है रे,*
*सैन है रे न असैन है रे ॥*
*नहिं पेट है रे नहिं पीठ है रे,*
*नहिं कड़वा है नहिं मीठ है रे ।*
*नहिं दुश्मन है नहिं ईट है रे,*
*नहिं सुन्दर दीठ अदीठ है रे ॥७॥*
{४. सूफीमत के संकेत । ऐन = विशेष । गैन = निर्विशेष(नुकता वा विन्दु लगाने से) इस सूफी मत के सम्बन्ध में वस्लाभधर्म पुस्तक कुरान में लिखा है - “सिफ़ा तुल्लाहे लेसो ऐने जातिन्” - अर्थात ईश्वर की जाति(तात्विकता) गुणों से विशिष्ठ नहीं है निर्विशेष है । उसकी जाति ऐन और प्रकृति के गुण गेन इसीसे कहे जाते हैं । कहा है - “जब इस नुक्तऐ हस्ती को दिया दिल से उठा । ऐन में गैन में क्या फेर है । अल्लाहः अल्ला” । ऐक ऐन नामी फ़कीर हुआ है, उसने इस विषय में खूब लिखा है उसकी कुण्डलियां प्रसिद्ध हैं ।}
न उसके कान है न आँख । न मुँह न वाणी । न विशेष है न सामान्य । न उसे किसी संकेत से संकेतित किया जा सकता है न असंकेतित ।
उसके पेट(उदर) है न पीठ है ।(उसके विषय में रस की बात पूछो तो) न वह कडुआ है न मीठा ।(व्यवहार में) न वह किसी का शत्रु हैं न मित्र । वह परम तत्व दृश्य-अदृश्य से भिन्न(अनिवर्चनीय) है ॥७॥
(क्रमशः)
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