#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*दादू कोई थिर नहीं, यहु सब आवै जाइ ।*
*अमर पुरुष आपै रहै, कै साधु ल्यौ लाइ ॥*
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**श्री रज्जबवाणी**
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत् संस्करण ~ Mahant Ramgopal Das Tapasvi
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*प्रसिद्ध साधु का अंग ३४*
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शून्य१ स्वरूपी साधु हैं, पंच तत्त्व तिन माँहिं ।
रज्जब रहैं सु एकठे, लिपैं छिपैं सो नाँहिं ॥१३॥
प्रसिद्ध संत ब्रह्म१ स्वरूप हैं, यद्यपि पंच तत्त्व तथा उनके कार्य रूप पंच ज्ञानेन्द्रिय उनके शरीर में हैं, तो भी वे उनके विषयों में लिपायमान नहीं होते और न संसार में छिपते हैं ।
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रज्जब मनसा१ बीज२ सौं, डर हि न साधु शेष ।
अकलि३ अवनि४ शिर पर सदल५, पिसण६ नहीं परवेश ॥१४॥
शेषजी बिजली२ से नहीं डरते कारण, उनके शिर पर मोटाई-युक्त५ पृथ्वी४ है, वैसे ही प्रसिद्ध संत मन से उत्पन्न आशादि१ से नहीं डरते कारण, उनके अन्त:करण में विवेकादि दैवी गुण सेना-सहित आत्म ज्ञान३ है इससे दुष्ट६ गुण उनके हृदय में प्रवेश नहीं करते ।
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अष्ट धातु काया कुल१ पर्वत, मनसा२ मही सु माँहिं ।
रज्जब साधु अनल३ सम, कुश कंटक कोउ नाँहिं ॥१५॥
पृथ्वी पर अष्ट धातुओं वाले संपूर्ण१ पर्वत हैं, वैसे ही आशा२ रूप पृथ्वी पर सात वीर्यादि धातु और आठवाँ जीव रूप वा अष्ट पुरी(पंच ज्ञानेन्द्रिय, पंच कर्मेन्द्रिय, अन्त:करण चतुष्टय, पंच प्राण, पंच भूत, काम, त्रिविध कर्म, वासना) रूप अष्ट धातुओं से युक्त संपूर्ण१ शरीर हैं, जिस पर्वत में अग्नि३ लगता है, उसमें कुशा और कांटे नहीं रहते, वैसे ही जिन शरीरों को साधु संग मिल जाता है उसमें क्रोधादि आसुर गुण नहीं रहते ।
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तार हुं पर तोरा१ नहीं, दामिनी२ का लवलेश३ ।
चपला४ करि चमकैं नहीं, रज्जब रवि राकेश५ ॥१६॥
बिजली२ का जोर१ तारों पर किंचित३ मात्र भी नहीं चलता और न बिजली४ से सूर्य चन्द्रमा५ चमकते, वैसे ही माया४ वा विषयाशा का जोर प्रसिद्ध संतों पर कुछ नहीं चलता और न वे उनसे चमकते ।
(क्रमशः)
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