सोमवार, 21 मई 2018

= शब्द का अँग(२२ - २७/२८) =


#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
*"श्री दादू अनुभव वाणी"* टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*शब्द का अँग २२*
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*शब्द*
दादू गुण तज निर्गुण बोलिये, तेता बोल अबो ।
गुण गह आपा बोलिये, तेता कहिये बोल ॥२७॥
२७ - २८ में शब्द - व्यवहार की पद्धति बता रहे हैं, अहँकारादिक आसुरी - गुण तथा पक्षपात को त्यागकर निर्गुण ब्रह्म सँबँधी वचन बोल ने चाहिये । ऐसे वचनों से किसी को भी कष्ट नहीं होता । अत: ऐसे वचन बोलना मौन के समान ही है । अहँकारादि आसुरी - गुण तथा एक पक्ष को ग्रहण कर के जो शब्द ले जाते हैं, वे वचन दूसरों को क्लेशप्रद होने से बोल कहलाते हैं ।
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साचा शब्द कबीर का, मीठा लागे मोहि ।
दादू सुनताँ परम सुख, केता आनंद होइ ॥२८॥
इति शब्द का अँग समाप्त ॥२२॥सा - १९५५॥
अहँकारादिक गुणों से रहित निर्गुण ब्रह्म सँबँधी कबीर के यथार्थ वचन हमें प्रिय लगते हैं । उनके श्रवण करते ही परम सुख प्राप्त होता है और विचार से तो कितना आनन्द आता है, उसे तो कह भी नहीं सकते ।
इति श्री दादू गिरार्थ प्रकाशिका शब्द का अँग समाप्त: ॥२२॥
(क्रमशः)

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