शुक्रवार, 18 मई 2018

= आयुर्बल-भेद आत्मा-बिचार(ग्रन्थ ३६ / ५-६) =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान,
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
*https://www.facebook.com/DADUVANI*
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*= आयुर्बल-भेद आत्मा-बिचार(ग्रन्थ ३६) =*
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*तीन दोई कै एकै होइ ।*
*आयुर्बल गति लखै न कोइ ॥*
*एक महीना के दिन तीस ।*
*घटत घटत दिन रहे जु बीस ॥५॥*
घोर कलिकाल में आकर प्राणियों की आयु धीरे-धीरे तीन, दो या एक महीने रह जाती है । फिर एक महीने की आयु(जो उस समय बहुत बड़ी मानी जाती है) भी घटने लगती है और वह दिनों तक सीमित हो जाती है । पहले तीस दिन फिर बीस दिन ही रह जाती है ॥५॥
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*बीसहु मैं पन्द्रह दश पाँच ।*
*च्यारि तीन द्वै इक दिन सांच ॥*
*एक दिवस की घटिका साठि ।*
*कै पचास चालीस हु नाठि ॥६॥*
फिर पापाचार के और बढ़ने पर बीस दिन में भी पन्द्रह, दस, पांच, चार, तीन, दो या एक दिन का ही आयुःप्रमाण रह जाता है । यह भी उस समय अधिक आयु मानी जायगी । आगे चल कर तो घड़ियों में ही आयुर्बल रह जायगा । एक दिन में साठ घड़ी होती हैं । वही आयुर्बल होंगी । फिर पचास, चालीस घड़ी का आयुर्बल भी मुश्किल से मिलेगा ॥६॥
(क्रमशः)

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