🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏 *श्री दादूदयालवे नमः ॥* 🙏
🌷 *#श्रीसुन्दर०ग्रंथावली* 🌷
रचियता ~ *स्वामी सुन्दरदासजी महाराज*
संपादक, संशोधक तथा अनुवादक ~ स्वामी द्वारिकादासशास्त्री
साभार ~ श्री दादूदयालु शोध संस्थान,
अध्यक्ष ~ गुरुवर्य महमंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमारामजी महाराज
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*= बारहमासो(ग्रन्थ ३५) =*
*= माघ मास =*
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*माघ सु परै तुसार१ जातन सब को करै ॥*
*सौरि२ सुफेदी३ वोडि संग पिय कै परै४॥*
*हूं तौ भई अनाथ आसिरा को नहीं ॥*
*(परि हां) सुन्दर बिरहनी दुखित*
*पुकारै मन मंहीं ॥११॥*
माघ महीने की यह भयंकर ठण्ड, इससे निरोध(बचाव) के लिए सभी यत्न करके मैं थक चुकी, सोड़(रजाई), दोहरी चादर ओढ़ ली, तो भी यह ठण्ड न गई ! यह ठण्ड तो बिना प्रियतम के संग सोये नहीं दूर हो सकती । और मेरा प्रियतम आज विदेश में है(घर पर है नहीं) इस दुःख में मेरा कौन सहारा है ! मुझ विरहणी मन ही मन(पति के लिए) अकुलाने के सिवा कोई रास्ता नहीं रह गया ॥११॥
(१. तुसार = तुषार, बर्फ की वर्षा, ठण्डे जल-कण) (२. सौरि = सौड़, तोशक) (३. सुफेदी = सफ़ेद या दोवड़) (४. परै = सोवै, लेटैं)
(क्रमशः)
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